रावत चूण्डा की मृत्यु होने पर उनका बड़ा पुत्र कांधल गद्दी पर बैठा l महाराणा कुम्भा ने रावत चूण्डा के बाद मेवाड़ के दूसरे रावत, अर्थात रावत कांधल को चूण्डा को दिए हुए सारे विशेषाधिकार सम्मान पूर्वक कांधल को दिए l महाराणा कुम्भा चित्तोड़ से बेगूं आये और कांधल की तलवार बंधाई की रस्म करी l महाराणा ने कांधल को हरावली हाथी, रत्न जडित हतियार आदि कई बहुमूल्य रतन भेंट करे और उसके पिता की ‘रावत’ की उपाधि दी [जो की मांडू रहते हुए होशंग शाह ने दी थी क्यूंकि चूण्डाजी ने खुद को राजकुमार संबोधित करने के लिए सुल्तान को मना कर दिया था] इसके अलावा महाराणा ने कांधल को अपने भाई-बेटों के साथ मेवाड़ी सेना में हरावल में रहने का विशेषाधिकार दिया l इसका कारण यह था की अक्सर जंग की व्यूह रचना के समय सेना की एक टुकड़ी मुख्या सेना से कुछ दूरी आगे चलती थी ताकि दुश्मन सैनिको को मेवाड़ी सेना की वास्तविक संख्या का अंदाज़ा न लग पाए साथ ही जब दोनों फौजों में शक्तिशाली टक्कर होए तो पीछे आ
रही चंद्रावल सेना जिसमे महाराणा खुद अपने भाई-बेटों के साथ रहते थे, उनको कोई नुकसान न होए l हरावल में रहने वाले योद्धा हमेशा वफादार होते थे जो कभी भी दुशमनो से डर कर या फिर राज्य हड़पने के लालच से दुश्मनों के साथ मिल ना जाये l यह व्यवस्था एक तरीके से चूण्डा द्वारा किये हुए त्याग और मोकल की रक्षा भार सँभालने का प्रतिक स्वरुप था जो की कांधल के लिए एक बड़ा सम्मान तो था ही साथ ही उसे उसके धर्म की याद दिलाता हुआ एक मौन-संदेशा था l कांधल को उमरावो में उच्च बैठक और चूण्डा की तरह मेवाड़ के पट्टे परवानो पर भाले का चिन्ह अंकित करने का अधिकार भी दिया जो की महारानी हंसाबाई ने चूण्डाजी को दिया था, ताकि उन्हें सहज ही पता चल जावे के यह सन्देश चूण्डाजी का ही है और कोई इसका विरोध न करे l
कांधल ने रावत बनते ही महाराणा की यथोचित सेवा करी और सेन्य अभियानों में अहम् योगदान दिया l जब महाराणा कुम्भा को उन्ही के पुत्र ऊदय सिंह ने मार दिया तो कांधल को बड़ा क्रोद्ध आया सारा मेवाड़ इस घटना से बोहोत दुखी हुआ l सबने कांधल को गद्दी सँभालने का सुझाव दिया किन्तु कांधल ने उदय सिंह से छोटे भाई रायमल को इडर से बुलाया और तिलक कर महाराणा बनाया l महाराणा रायमल ने कांधल की सहायता से उदय सिंह पर हमला बोल दिया और युद्ध में परिजित किया l जब उदय सिंह जिसे मेवाड़ में ''हत्त्यारा उदा'' नाम से पुकारते थे, ने मांडू के सुल्तान गयासुद्धीन की मदद से मेवाड़ पे हमला किया तो कांधल के सेनापतित्व में मेवाड़ी सेना ने सुल्तान को हराया l बाद में उदा मांडू में बिजली गिरने से मारा गया l
महाराणा रायमल के तीनो पुत्रों पृथ्वीराज, जयमल और सांगा में आपसी झगड़ा हुआ l सांगा की हत्या करने के लिए पृथ्वीराज और जयमल ने तलवारें उठाई और उसे मरने के लिए उतारू हुए तभी चूण्डा के छोटे भाई अज्जा जी के पुत्र सारंगदेव ने सांगा के प्राण बचने के लिए अकेला दोनों से युद्ध करते हुए जुझार हो गया उसी महान सारंगदेव के वंशज सारंगदेवोत कहलाये उन्हें कानोड़, बाठेडा, लक्ष्मणपूरा अदि जागीरें मिली l बाद में सांगा के प्राण बीदा जैतमालोत राठोड़ ने भी एक आँख खो चुके घायल सांगा को संगरक्षण दिया और प्राण बचाए l उसके वंशजों को मेवाड़ में केलवा, आगरिया, पाटिया आदि ठिकाने मिले l फिर जब पृथ्वीराज की उसके अपने जमाई सिरोही के महाराज द्वारा जहर दे कर हत्या हो गयी और बाद में टोडा की राजकुमारी के मामा ने जयमल की भी हत्या कर दी तब सांगा चितौड़ लौट आया l तब मेवाड़ में खली पड़े सिंहासन के वारिस के लौटने से महाराणा रायमल बहुत खुश हुए किन्तु कुछ ही दिनों पश्चात् उनकी भी वृद्धावस्ता में महाराणा रायमल की मृत्यु हो गयी l तब कांधल ने पूरी परंपरा के साथ महाराणा सांगा की तलवार बंदी की और तिलक कर गद्दी पर बिठाया l
जब इडर के भानु नाम के एक लुटेरे डाकू ने बड़ा गुट बना के मेवाड़ में लूट फसाद फैलाया तब महाराणा सांगा ने कांधल को सेना सहित भेजा और उसे मारने की आज्ञा दी l महाराणा की आज्ञा को अपना धर्म मानकर कांधल तुरंत उसे मारने निकला और काम पूरा कर के ही लौटने की शपत ली l लेकिन भानु डाकू लड़ाई में ज्यादा सैनिक देख कर भाग जाता था और बाद में पुनः वही लूट-अशांति फेलता था l वह छापामारपद्दथी से युद्ध करता था l तब वृद्ध और बूढ़े हो चुके लेकिन अपने प्रण और धर्म के प्रति उर्जावान महावीर रावत कांधल ने भानु को उसके पुरुषत्व का वास्ता दिलाते हुए युद्ध के लिए ललकारा और अकेला ही घोड़े पर उसे मारने घने जंगलो में निकल पड़ा l जब भानु ने कांधल का संदेसा पाया तो वह भी अकेला लड़ने आया l
भानु ने सोचा की वह अकेला ही उस वृद्ध राजपूत को मार देगा और कांधल के वचन अनुसार मेवाड़ की सेना पुनः लौट जाएगी और उसे कभी कोई सिपाही नहीं पकड़ेगा और तब वह आजादी से जो चाहे करेगा और अपना नया राज जमाएगा जो मेवाड़ की कब्जे की रियासत इडर की और मेवाड़ की जमीन से निकला होगा l वीरता, स्वाभिमान, स्वामिभक्ति और वचनबद्धता को प्रमाणित करते उस युद्ध में जब दोनों का सामना हुआ तब बुद्धे रावत कांधल ने अनदेखा और अद्वितीय शौर्य का परिचय दिया और भानु लुटेरे को मार कर घायलावस्था में अपने दिव्य प्राण त्याग कर मोक्ष को प्राप्त हुआ और वीरगति पाई l भानु को मारते हुए भलाई कांधल को अपना जीवन न्योछावर करना पड़ा लेकिन उसने महाराणा का आदेश पूरा किया, मेवाड़ में शांति कायम हुई और अपने पिता रावत चूण्डा द्वारा महाराणा की सेवा की शपथ और त्याग के मार्ग पर अमर हो गया l
रावत कांधल के 4 पुत्र हुए -:
रतन सिंह चूण्डावत
सिंह चूण्डावत (पुत्र - जग्गा चूण्डावत ठि. अमेट और सांगा चूण्डावत ठि. देवगड़)
डूंगर सिंह चूण्डावत (ठि.गोगाथल और ठि.पाखंड)
खेमकर्ण चूण्डावत !
इस भारत भूमि पर कई वीर योद्धाओ ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने धर्म संस्कृति और वतन पर खुद को न्यौछावर कर दिया। सत् सत् नमन है इन वीर योद्धाओं को।
सोमवार, 2 मार्च 2015
रावत कांधल (l)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें