जयपुर के महाराजा जयसिंह जी ने बड़ी लगन और हसरतों के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए जयपुर नगर बसाया | देश विदेश से नगर बसाने के लिए विशेषज्ञ व कारीगर बुलवाए | पुर्तगाल तक से शहर के मानचित्र बनवाये,पंडित विद्याधर जैसे उच्च कोटि के शिल्पी के मार्गदर्शन में हजारों कारीगरों ने जयपुर नगर की भव्य इमारतें,महल,बाजार दुकाने,चौड़ी चौड़ी सड़कें , चौराहों पर चोपड़ ,पानी की प्याऊ आदि बड़े ही सलीके से एक एक इंच नाप चोक कर बनाई | ज्योतिष विज्ञान में पारंगत महाराजा ने पुर्तगाली ज्योतिष विशेषज्ञों के सहयोग से जंतर मंतर बनवाकर बड़ा नाम कमाया |
इस तरह कई अच्छे अच्छे कार्य करने के बाद महाराजा को उनके नजदीकी लोगों ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सलाह दी जिसकी इच्छा महाराजा जयसिंह जी के मन में भी थी | सो अश्वमेघ यज्ञ की तैयारियां शुरू हुई | पूरा प्रबंध होने के बाद विधि विधान से अश्वमेघ यज्ञ शुरू हुआ | अब अश्वमेघ यज्ञ की विधि अनुसार अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ने की बारी आई | विचार हुआ कि अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा तो वो बाहर जायेगा और वह बाहर जायेगा तो कोई न कोई उसको पकड़ेगा और युद्ध होगा क्योंकि एक तरफ जोधपुर के राजा अजीतसिंह जी जयपुर से नाराज थे तो दूसरी और मेवाड़ वाले भी किसी बात को लेकर जयपुर से खफा था | इसलिए तय किया गया कि अश्वमेघ का घोड़ा सिर्फ जयपुर शहर में ही घुमाया जायेगा, सो जयपुर शहर के परकोटे के सभी द्वार बंद कर अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा गया | उसके पीछे रक्षा के लिए ठीक रामजी की सेना की तरह जयपुर की सेना की एक शस्त्रों से सुसज्जित टुकड़ी चली |खुद महाराजा जयसिंह जी हथियारों से लेश हो घोड़े पर सवार हो, धनुष पर तीर चढ़ाये अश्वमेघ के घोड़े के पीछे पीछे चले |
जयसिंह जी के पास ही भांडारेज के दीपसिंहजी रहते थे जो महाराजा जयसिंह जी खास मर्जीदानों में से एक थे | जब दीपसिंहजी ने अश्वमेघ का घोड़ा और उसके पीछे हथियारों से लेश चलती जयपुर की सेना देखि तो सोचा ये क्या नाटक है ? शहर के सभी दरवाजे बंद है और महाराजा शस्त्रों से सुसज्जित योद्धाओं के साथ किससे लड़ने जा रहे है ? यदि ऐसे ही योद्धा है तो घोड़े को शहर से बाहर क्यों नहीं निकालते ? इस तरह अश्वमेघ यज्ञ व वीरता का नाटक करना तो राजपूती और वीरता दोनों का अपमान है | इस तरह का स्वांग तो अपनी खुद की हंसी उड़ाने का भोंडा प्रयास है |
इस तरह अश्वमेघ यज्ञ का स्वांग देखकर दीपसिंहजी के मन में कई तरह के विचार आये | और जैसे ही अश्वमेघ का घोड़ा उनकी हवेली के आगे से गुजरा उन्होंने झट से उसे पकड़कर अपनी हवेली में लाकर बाँध दिया | हवेली के दरवाले बंद कर खुद अपनी हवेली की छत पर जाकर खड़े हो गए | महाराजा जयसिंह जी ये सब देख चकित रह गए फिर संभल कर दीपसिंह जी को आवाज दी-
" शाबास ! देखली आपकी बहादुरी और हिम्मत | आज तो आपने अश्वमेघ का घोड़ा पकड़कर नाम कमा लिया | अब घोड़ा छोड़ दो |
"नाम हो गया या अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ने पर नाम डूब जायेगा ? आपने अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा है या खेल कर रहे है ? यदि इसी तरह अश्वमेघ यज्ञ हों और सम्राट की उपाधियाँ मिले तो एसा खेल तो कोई भी रच लेगा ? बिना युद्ध हुए और लहू की नदियाँ बहे अश्वमेघ यज्ञ कभी पूरा नहीं होता | बिना युद्ध के तो ये सिर्फ स्वांग है स्वांग | आप जिस तरह से बंद परकोटे में सेना सजाकर अश्वमेघ के घोड़े के पीछे निकले है ये राजपूती के लिए ललकार है और इस ललकार को एक राजपूत होने के नाते मैंने स्वीकार किया है| महाराज शस्त्र उठाईये और युद्ध कर घोड़ा ले जाईये |"
और अपने बीस पच्चीस साथियों व सेवको के साथ दीपसिंह तो तलवार ले जयपुर के सैनिको पट टूट पड़ा उसने वीरता पूर्वक युद्ध कर ऐसी धमाल मचाई कि -महाराजा जयसिंह को भी यज्ञ का घोड़ा छुडवाने का मजा आ गया | और इस युद्ध में दीपसिंहजी वीरगति को प्राप्त हो गए पर महाराज जयसिंह के अश्वमेघ यज्ञ को स्वांग से असली बना गए |
इस भारत भूमि पर कई वीर योद्धाओ ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने धर्म संस्कृति और वतन पर खुद को न्यौछावर कर दिया। सत् सत् नमन है इन वीर योद्धाओं को।
बुधवार, 11 मार्च 2015
एक वीर जिसने स्वांग अश्वमेघ को वास्तविक अश्वमेघ यज्ञ में बदल दिया
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