सोमवार, 2 मार्च 2015

पश्चिम को ढलता सूरज !

पश्चिम को ढलता सूरज जैसलमेर के स्वर्ण मय दुर्ग को रक्ताभ चमका रहा है ।
किन्तु भय ये है कि जब अँधेरा घना होगा तब ये चमक कम होगी।
मन उदास हो गया
अचानक किले का परकोटा किसी फिल्म पर्दे में बदल गया ।
मुझे स्पष्ट दिख रहा था वीर देरावर और राव ताणु के घोड़े ।
टिड्डी दल की तरह उमड़ती गजनवी की सेना।
राव जैसल का पराक्रम।
गाजर मूली की भाति कटते पठान।
ढाई शाके ।
अतुल पराक्रम और उत्सर्ग के वे अद्भुत दृश्य। आहा !!
कैसा विहंगम और गौरवशाली इतिहास।
मान्य समाज के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने की होड । सहसा अँधेरा हुआ । दृश्य गायब।
दुर्ग से गंभीर प्रतिध्वनि सुनाई दी।-----"-उदास मत हो --पगले!!
केवल रात ही तो हुई है'; जो कि प्रकृति का नियम है ---- कुछ देर की बात है, फिर से सुबह होगी।"

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