सोमवार, 2 मार्च 2015

वीरता का सबूत !

एकबार अकबर का दरबार लगा हुआ था. नवरत्नों में से राजधानी में कोई उपस्थित नहीं थे. लोग अपने फरियादें सुना रहे थे. तभी बादशाह सलामत के चोबदार ने
घोषणा की, कि दो राजपूत युवक बादशाह केसामने कुछ निवेदन करना चाहते हैं. अकबर की आज्ञा से दोनों नवयुवक दरबार में उपस्थित हुए. लम्बे, छरहरे, शक्तिशाली ढाल और तलवार से युक्त. बड़ी ही ख़ूबसूरत नज़र आ रहे थे. केसरिया पगड़ी,चूड़ीदारT पायजामा, सर गर्व से...उन्नत. सारे दरबार कि आँखे,
उनकी ओर लगी थी. उन्होंने बादशाह को झुककर सलाम किया और चुपचाप खड़े हो गए. बादशाह ने कहा- हमें बताया गया था कि तुम कुछ फ़रियाद करने आये हो. बादशाह सलामत, हम राजपूत हैं. हमारा निवेदन यही है कि हमें वीरोचित कोई काम सौंपाजाय. हमने सुना है कि आप वीरों और विद्वानों के पारखी हैं और आप उन्हें सम्मान देते हैं. आप अपनी सेना में हमें रख लें और असंभव वीरता के काम सौंपे. सारा दरबार उनके बाते सुन रहा था. अकबर ने कहा- हमें कैसे भरोसा हो कि तुम वास्तव में वीर हो? कोई सबूत ?
.....दोनों नवयुवकों ने एक दुसरे कि ओर देखा. उनमे से एक ने कहा- बादशाह सलामत, हम राजपूत हैं....| हमें तो मालूमही नहीं है कि सबूत क्या होता है और कैसे दिया जाता है....| बादशाह कि आँखे लाल हो गयी | दरबार में कोई नवरत्न नहीं था जो बात को संभाल सके. बीरवल आने ही वाले थे, पर किसी काम से आ न पाएथे. बादशाह गरजा- तो फिर तुम वीर हो यह कैसे कह सकते हो? हर कोई आदमी अपनी वीरता का ढोंग रच सकता है. हमें तो सबूत चाहिए...... या तो सबूत पेश करो या फिर चले जाओ.......| यह दरबार डींग हांकनेवालों के लिए नहीं है. तिरस्कार भरी बादशाह के बातें सुनकर दोनों युवकों की आँखों में खून उतर आया, पर वह बादशाह अकबर का दरबार था. उन्हें अपनी वीरता का सबूत देना ही था. उन नवयुवकोंने अपनी कुल देवी भवानी का स्मरण किया,बादशाह के सामने सर झुकाया और फिर अपनी-अपनी तलवारें म्यान से खीच ली.......फिर तो उन्होंने तलवारबाजी के वो करतब दिखलाये कि सारे दरबारी भौंचक्के रह गए. खुद बादशाह अकबर हैरान रह गए. उन्होंने बड़े-बड़े तलवार बाजों को देखा था, पर ये दोनों वीर तो अद्भुत थे. बिजली कि कड़क कि तरह तलवारें बरस रही थी. एक घंटे से ऊपर होगया था. उनके शारीर से जगह-जगह से खून बह रहा था. .......तभी जय भवानी के स्वर केसाथ एक नवयुवक कि तलवार कौंधी और उसनेदुसरे नवयुवक का सर धड से अलग कर दिया.दुसरे युवक ने गिरते-गिरते भी ऐसा वारकिया कि पहला नवयुवक मरणासन्न जमीन परलोट गया. .........बादशाह अपने गद्दी छोड़करदौड़े. यह क्या गजब हो गया. यह कौन सी नादानी की इन अद्बुत तलवार बाजों ने ?ऐसे शूरवीर तलवार के धनी, मौत से बिलकुल बेख़ौफ़ | यह क्या हो गया. बादशाहउस मनासन्न युवक के पास पहुंचे. मरते-मरते ही उसने कहा, बादशाह हम राजपूत हैं. जिंदगी और मौत में हम कोई फासला नहीं मानते, आपने सबूत माँगा. वीरों के पास वीरता का सबूत कैसा? हम तो जागते, सोते, लड़ते मौत को तलवार की नोंक पर टाँगे चलते हैं. कहते-कहते उसकी आँखे मूँद गयी. बादशाह शोक से भर गए. ........तभी घोषणा हुयी कि राजा बीरबल आ पहुंचे हैं. उनके आते आते शायद किसी ने घटना की सूचना दे दी थी. बादशाह को सलाम करते हुए बीरबल बोले, सम्राट मुझे आने में देर हो गयी. मैं होता तो आपसे प्रार्थना करता कि राजपूतों से
वीरता का सबूत कभी न मांगे. उनके पास वीरता का केवल एक ही सबूत होता है, मौतको हँसते-हँसते गले लगाना. बादशाह अकबर की आँखे गीली हो गयी.
जय क्षत्रिय/ जय राजपूत

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