मंगलवार, 31 मार्च 2015

महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णाकँवर

    कृष्णा मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह की पुत्री थी। वह अत्यन्त ही सुशील एवम् सुन्दर थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो जयपुर और जोधपुर के राजाओं ने महाराणा के पास विवाह हेतु सन्देश भेजे। महाराणा भीमसिंह अपनी कन्या के विवाह हेतु सुयोग्य वर की खोज में थे। उन्होने जोधपुर-नरेश के यहाँ अपनी सुपुत्री की सगाई के लिए आमन्त्रण भेजा।

       इधर जयपुर के राजा को जब यह ज्ञात हुआ कि महाराणा भीमसिंह ने उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी है तो वे अत्यन्त क्रोधित हुए। इस अपमान का बदला लेने के लिए उन्होने चित्तौड़ पर आक्रमण करने की योजना बनाना शुरू कर दिया। गुप्तचरों के द्वारा जब जोधपुर नरेश को जयपुर के राजा की योजना का पता चला तो वे भी आग बबूला हो उठे।
      जयपुर तथा जोधपुर के राजाओं में ठन गई। दोनों राजपूत राजाओं में भयंकर युद्ध हुआ। परन्तु विधि का विधान कुछ और था। जोधपुर के सैनिकों के पाँव उखड़ गये। जयपुर नरेश की विजय हुई। जयपुर नरेश ने मेवाड़ के महाराजा को सन्देश भेजा कि अपनी सुपुत्री का विवाह अब उनसे कर दें। यह सन्देश पाते ही महाराणा ने जयपुर नरेश को एक पत्र लिखा।
    “ मेरी सुपुत्री कृष्णा कोई भेंड़ अथवा बकरी नहीं है कि लाठी चलाने वालों में जो विजयी हो वही हाँक कर ले जाय। वह मेरी पुत्री हैउसका भला-बुरा विचारने के उपरान्त ही मैं किसी सुयोग्य वर से उसका विवाह करूँगा।“
    जयपुर नरेश ने इस पत्र को पढ़ते ही सेना को तैयार होने का आदेश दे दिया। एक लम्बी सेना लेकर मेवाड़ की ओर चल पड़े। मेवाड़ के पास उसने अपनी छावनी बनाई और महाराजा भीमसिंह को एक धमकी भरा सन्देश भेजा कि यदि वे कृष्णा का विवाह उनसे नहीं करते तो डोली के स्थान पर कृष्णा की अर्थी उनके सामने से जायेगी।
    “कृष्णा की अर्थी ही जायेगी।“
    प्रश्न पराजय का नहीं देश की रक्षा एवं आत्म सम्मान का था। फिर भी माँ-बाप का हृदय विह्वल हो उठा रोते-रोते उनकी घिग्घियाँ बॅध गयीं थी। आँखे अंगार हो गई थीं। जब यह बात कृष्णा  को मालूम हुई तो वह बहुत प्रसन्न हुई। उसने अपनी माँ को समझाते हुए कहा, माँ आप क्षत्राणी होकर रो रही हैं। आप तो मुझसे कहा करती थीं कि देश के सम्मान के लिए मरने वाला धन्य होता है। देवता भी ऐसे महान
व्यक्ति की उपासना करते है। माँ यह तो मेरे लिए बहुत बड़ा उपहार है। इससे बड़ा गौरव मुझे और क्या प्राप्त होगा?“
    पुनः कृष्णा पिता की ओर मुड़ी और बोली,
    “पिता जी आप राजपूत हैं। राजपूती शान और मर्यादा को रखने के लिए आप मुझे एक प्याला विष दे दें। मैं देश के लिए सैकड़ों बार
जन्म लेकर मरने के लिए तैयार हूँ।“
    कृष्णा को विष का प्याला दे दिया गया और उसने हॅसते-हॅसते उसको पान कर लिया।
    कृष्णा की जब अर्थी निकली तो जयपुर-नरेश का हृदय विदीर्ण हो गया और रुंधे गले से वह भी बोल उठा, “हे वीर बाला तू धन्य है
मैं तुझे सत्-सत् प्रणाम करता हूँ।“

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