सोमवार, 2 मार्च 2015

राव कुंपा, राव जेता (जोधपुर):-

जोधपुर राज्य के इतिहास में जहाँ वीर शिरोमणि दुर्गादास स्वामिभक्ति के लिये प्रशिध है तो राव कुंपा और उसके चचेरे भाई जेता का नाम प्रशिध दक्ष सेनापति,वीरता,साहस,पराक्रम और देश भक्ति के लिए मारवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है |
राव कुंपा जोधपुर के राजा राव जोधा के भाई राव अखैराज के पोत्र व मेहराज के पुत्र थे इनका जनम वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी क्रमेती भातियानी जी के गर्भ से हुवा था |
राव जेता मेहराज जी के भाई पंचायण जी का पुत्र था अपने पिता के निधन के समय राव कुंपा की आयु एक साल थी,बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक मालदेव की सेवा में चले गए |
मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुंपा व जेता जेसे वीर उसके सेनापति थे,मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को मालदेव की आज्ञा से राव कुंपा व जेता ने अजमेर व मेड़ता छीन कर भगा दिया था |
राव कुंपा, राव जेता और राव विरमदेव:-
अजमेर व मेड़ता छीन जाने के बाद राव विरमदेव ने डीडवाना पर कब्जा कर लिया लेकिन राव कुंपा व जेता ने राव विरमदेव को डीडवाना में फिर जा घेरा और भयंकर युद्ध के बाद डीडवाना से भी विरमदेव को निकाल दिया, विरमदेव भी उस ज़माने अद्वितीय वीर योधा था |
डीडवाना के युद्ध में राव विरमदेव की वीरता देख राव जेता ने कहा था कि यदि मालदेव व विरमदेव शत्रुता त्याग कर एक हो जाये तो हम पूरे हिन्दुस्थान पर विजय हासिल कर सकतें है
राव कुंपा, राव जेता और शेरशाह सूरी:-
राव कुंपा व राव जेता ने मालदेव की और से कई युधों में भाग लेकर विजय प्राप्त की और अंत में वि.सं. 1600 चेत्र शुक्ल पंचमी को सुमेल युद्ध में दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के साथ लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की |
इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुंपा व जेता दस हजार सेनिकों के साथ थे भयंकर युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सेनिक काट डालकर राव कुंपा व जेता ने अपने दस हजार सेनिकों के साथ वीर गति प्राप्त की मातर भूमि की रक्षार्थ युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने वाले मरते नहीं वे तो इतिहास में अमर हो जाते है |
अमर लोक बसियों अडर,रण चढ़ कुंपो राव !
सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव.....!!
उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सेनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण की हिम्मत नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा
बोल्यो सूरी बैन यूँ , गिरी घाट घमसान
मुठी खातर बाजरी,खो देतो हिंदवान
कि मुठी भर बाजरे कि खातिर में दिल्ली कि सल्तनत खो बैठता,और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना में आक्रमण करने कि गलती नहीं की।
सत सत नमन है क्षत्रिय वीर योद्धाओ को।

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