शनिवार, 20 जून 2015

नरबद - सुपियारदे

यह एक ऐसी इतिहास-कथा है, जिसमें तत्कालीन समय के सामाजिक हालातों का पता चलता है | स्त्री को लेकर होने वाले विग्रह और स्त्रियों की स्थिति, स्त्री का स्वाभिमान आदि सुपियारदे की इस कथा के मूल में है ही, प्रेम की एक निश्छल और पवित्र धारा भी यहाँ प्रवाहित है|
रूण पर उन दिनों सांखलों (परमारों की एक शाखा) का शासन था | रूण के स्थापत्य के खंडहर सांखलों के वैभव की गवाही देते हैं | पर उन दिनों इसका वैभव उतार पर था | रूण पर सांखला सीहड़ (सिंहभट्ट) का शासन था| उसने अपनी बेटी सुपियारदे का नारियल मंडोर के शासक नरबद सतावत को भेजा | यह नरबद राव चूंडा राठौड़ का पोता था | उसके पिता सता ने अपने भाई रणधीर के साथ मिलकर रणमल को मंडोर नहीं लेने दिया था | नाराज राव रणमल राणा मोकल के पास चला गया था | इस तरह आपसी विग्रह के कारण सुपियारदे की शादी नरबद से न हो पाई | तब रूण अधिपति सीहड़ सांखले ने अपनी बेटी जैतारण के शासक नरसिंह खिन्दावत सींधल को ब्याह दी | सींधल राठौड़ों की ही शाखा है, जो राव आस्थान के पुत्र जोपसा के वंशज हैं | बिलाड़ा महत्वपूर्ण ठिकाना था, जो राव जोधा के समय तक सींधलों के कब्जे में था |
नरसिंह सींधल प्रभावशाली और दम्भी व्यक्ति था| राठौड़ों की अन्य शाखाओं से उसकी बनती नहीं थी | रणमल और नरबद के विग्रह में घायल नरबद को राणा मोकल उठा कर ले गया था और नरबद उन दिनों चित्तौड़ में राणा मोकल के पास ही रहता था | ख्यातों, किवदंतियों के अनुसार उस विग्रह में उसकी एक आँख भी चली गई थी |
राणा मोकल के दरबार में एक दिन गायकों ने प्रेम-प्रीत का संगीत छेड़ा तो नरबद ने नि:श्वास छोड़ा | राणा मोकल ने नरबद से इसका कारण पूछा, तब नरबद ने सुपियारदे से सगाई होने वाली बात बताई और कहा की सांखलों ने मेरी मांग (मंगेतर) नरसिंह को ब्याह दी |
राणा मोकल ने रूण संदेशवाहक भेजा और कहलवाया कि नरबदजी की मंगेतर दो | अब सांखले क्या करते ? सुपियारदे की तो वे शादी कर चुके थे | उन्होंने राणा को कहलवाया कि वे अपनी छोटी बेटी की शादी नरबदजी से कर देंगे | पर नरबद ने राणा मोकल के सामने हठ पकड़ लिया कि ‘यदि सुपियारदे तोरण पर मेरी आरती उतारे तभी शादी करूंगा|’ राणा मोकल नरबद से बहुत आत्मीयता रखते थे | उन्होंने रूण सन्देश भेज कर साँखलों से इस बात को मंजूर करवाया कि सुपियारदे तोरण पर नरबद की आरती उतारेगी |
यह बात सींधल नरसिंह ने भी सुनी | दम्भी तो वह था ही, उसने सुपियारदे को पीहर भेजने से ही मना कर दिया | सुपियारदे भी पीहर जाने के लिए अड़ गई, क्योंकि उसकी बहन का विवाह था | | सींधल नरसिंह ने उसे इस शर्त के साथ पीहर भेजा कि वह नरबद की आरती नहीं उतारेगी |
तोरण पर आरती उतारने के लिए सीहड़ सांखले ने छोटी बेटी को भेज दिया, पर नरबद ने कहा यह सुपियारदे नहीं है | वहां बात बढ़ गई | नरबद ने नगाड़े पर चोट करके चेतावनी दी, कि यदि सुपियारदे आरती नहीं करेगी तो मैं रूणनगर की ईंट से ईंट बजा दूंगा | विवशता में बाप ने बेटी के सामने हाथ पसारे | सुपियारदे आरती करने आई और नरबद से बोली-
‘हुकम! आप आरती तो करा रहे हो, पर उस ठाकुर ने मुझे मना किया है और वह मुझे दुःख देगा |’ कहते हैं तब नरबद ने कहा कि अगर वह तुम्हें दुःख देगा तो मुझे खबर करना, मैं वचन देता हूँ कि तुम्हें आकर ले जाऊँगा |
सींधल नरसिंह ने अपने एक खवास को जासूसी करने रूण साँखलों के यहाँ भेज दिया था | वह हेराऊ (जासूस) प्रत्येक गतिविधि पर नजर रख रहा था | उसने सुपियारदे के साळू पर निशान कर दिया और इत्र का छिड़काव कर दिया |
वापिस बिलाड़ा आने पर सुपियारदे के पति ने जवाब तलब किया तब सुपियारदे झूठ बोल गई | सींधल नरसिंह ने अपने खवास को सुपियारदे के सामने हाजिर किया और उसे झूठा सिद्ध किया | दम्भी नरसिंह अपनी औकात पर उतर आया और सुपियारदे को अनेक प्रकार से प्रताड़ित करने लगा | उसने सुपियारदे को चाबुक से मारा और खाट के नीचे डालकर दूसरी औरत के साथ रंगरेलियां करने लगा | सुपियारदे ने अपने पति से कहा कि मुझे चाहे मार, काट, पर मेरे सामने दूसरी औरत मत ला| पर नरसिंह तो मदांध हो चुका था, क्योंकि एक स्त्री ने उसकी अवहेलना की थी | तिलमिलाया नरसिंह सुपियारदे से जानवर की तरह बरताव करने लगा | तब सुपियारदे ने अपने पति से उसका नाम लेकर बात की | आज भी राजस्थान में स्त्रियाँ अपने पति का नाम नहीं लेती हैं, उस समय की तो बात ही और थी | वस्तुत: वह सीन्धल नरसिंह का भयंकर अपमान था | सुपियारदे बोली – ‘नरसिंह सींधल ! तुमने जो करना था वह कर लिया, अब तुम्हारी सेज आऊँ तो अपने भाई की सेज सोऊँ |’
पति-पत्नी के इस झगड़े की खबर जब नरसिंह की माँ को लगी तो उसने नरसिंह को फटकारा और वह सुपियारदे को अपने पास ले आई | पर सुपियारदे ने गहने उतार दिए और अपने घर में अबोला रख कर रहने लगी | फिर सुपियारदे ने गोपनीय तरीके से कागद नरबद के पास भेजा कि ‘आपकी आरती उतारने का मुझे यह फल मिला है |’ नरबद यही तो चाहता था | उसने भी सुपियारदे को भगा लाने की तैयारियां शुरू कर दी |
इधर नरबद ने दो बैल तैयार किये, जिसे बैहली ( छोटी बैल गाड़ी ) में जोड़ कर नरबद रोज दौड़ाता था, लगभग तीस कोस जाने और आने का अभ्यास उसने किया और उसमें बैलों को निष्णात कर दिया |
इतनी तैयारी करने के बाद नरबद ने सुपियारदे को उस आदमी के हाथ एक मरदानी पोशाक भेजी, जो सुपियारदे का पत्र लाया था | सुपियारदे कपड़े पहन कर मरदाने रूप में तैयार हो गई | पाघ-पगड़ी पहने और शस्त्र धारण किये सुपियारदे एक सजीले बांके नौजवान की तरह दिखने लगी| जब वह घर से निकली उस समय गाँव में रावळिये रम्मत का खेल दिखा रहे थे | सभी सींधल खेल देखनें में मस्त थे | जब सुपियारदे घर से निकली तब अपने अंधे ससुर खींदसी के सामने से निकली | तब खींदसी बोला – यहाँ से कौन निकला ? चौबदार ने कहा- यहाँ से तो कोई नहीं गया | पर खींदसी को चौबदार पर विश्वास नहीं हुआ| वह उठकर रावळे में गया और ठकुरानी से बोला – ‘उठो ! और बहू की खबर करो |’ ठकुरानी ने कहा – ‘क्यों क्या बात हुई ?’ तब अंधे ठाकुर ने कहा – ‘जब बहू को ब्याह कर लाये थे ,तब मैंने उसके चलने की आवाज सुनी थी, वही आवाज आज फिर सुनी है | तब कह रहा हूँ कि बहू निकल गई है | ठकुरानी ने डावड़ी भेजी कि जाकर सुपियारदे को देख आये कि वह अपने माळिये में है कि नहीं ? सुपियारदे ने जाते समय सीरख (रजाई) लपेट कर उसके ऊपर चादर दाल दी थी, जो व्यक्ति के सोने का आभास देती थी | डावड़ी ने वापिस आकर कहा कि बहूरानी तो सो रही है | तब खींदसी ने अपनी पत्नी से कहा – ‘यह डावड़ियों का काम नहीं है, आप खुद जाकर देखो |’ तब सासू ने जाकर देखा तो वहां चादर के नीचे सीरख पड़ी थी | तब वापिस आकर ठकुरानी ने कहा – ‘बहू तो चली गई |’
सुपियारदे रावळे से निकल कर रावळियों की रम्मत के स्थान पर पहुंची | वहां रावळिये रम्मत की थाली घुमा रहे थे | सुपियारदे ने थाली में मोहर डाली और चलते बनी | नरबद ने जैतारण की बाड़ी का ठिकाना तय किया था, वहां जा पहुंची | उधर थाली में मोहर देख रावळियों के सरदार ने कहा – यह मोहर किसने डाली? क्योंकि मोहर तो कोई राजसी अथवा विशेष हैसीयत वाला ही डाल सकता था| थाली घुमाने वाले ने कहा कि यह तो एक नौजवान ने डाली थी | तब सारे लोग उठ गए | गाँव में लोग एक दूसरे को जानते पहचानते हैं | यह अनजान कौन था ? सींधलों को शंका तो थी ही | रम्मत समाप्त कर वे लौटे तो पता चला कि सुपियारदे तो निकल गई | तब गाँव में ढोल बजा | सींधल सब पीछा करने के लिए चढ़ दौड़े | आगे उन्हें बैहली के पहियों के निशाँन दिखे | सींधलों ने समझ लिया कि नरबद ले जा रहा है | उन्होंने पीछा किया |
भागते नरबद के आगे लूणी नदी आ गई | पीछे सींधल आ रहे थे, ऐसे में भरी हुई नदी देख नरबद घबरा कर बोला – सुपियारदे नदी उफन रही है, पार होना बड़ा मुश्किल है | सुपियारदे हिम्मत बंधाते बोली – प्रवाह की परवाह मत करो | बैहली को नदी में कुदावो | हमें पीछा करने वालों की पकड़ में नहीं आना है | तब नरबद ने जोश में आकर बैहली नदी में डाल दी | बैलों ने तीर की तरह नदी पार करली | सींधलों ने भी घोड़े नदी में उतार दिए, पर वे नरबद को पकड़ नहीं पाए | प्रभात की वेला में नरबद कायलाने जा पहुंचा |
बीच में नरबद का छोटा भाई आसकरण सामने आया था | नरबद ने उसे कहा कि तुम सुपियारदे को कायलाना ले जाओ, मैं सींधलों का मुकाबला करते समाप्त होना चाहता हूँ | पर आसकरण नहीं माना | उसने नरबद से कहा कि आप तो पधारो, मैं इनको रोकता हूँ | खत्म तो मैं ही होऊँगा | तब नरबद निकला और आसकरण सींधलों से मुकाबला करते कम आया | पर उसने इतना संघर्ष किया कि नरबद सुरक्षित निकल गया| सींधल हाथ मलते वापिस बिलाड़ा चले गए| भाई के मान के लिए भाई ने अपना बलिदान दे दिया | मध्यकाल के ये वृतांत आज चमत्कृत करते हैं |
कायलाने में आसकरण की स्त्री ने सत की तैयारी करते कहा – ‘मैं उस स्त्री को देखना चाहती हूँ ,जिसके कारण मेरा पति काम आया |’ तब आसकरण की बहू के सामने सुपियारदे गई | सुपियारदे को देख कर आसकरण की बहू ने कहा कि राजपूतों के लिए लड़कर मरना तो एक ॠण उतारने के सामान है किन्तु जेठजी ने शत्रुता भी बढ़िया की |
उधर बिलाड़ा लौटते सींधल एक तालाब पर उतरे | उस वक्त तालाब पर पानी भरने आई एक पणिहारी ने पूछा -
‘वीरा ! किस सरदार की स्त्री गई ?’ तब घोड़े को अपनी जाँघों में दबाए वटवृक्ष की शाख पकडे झूला झूलते नरसिंह बोला – ‘मेरी स्त्री गई | शारीरिक बल से तो जाने नहीं देता, पर स्त्रियों का स्वभाव है , वे किसी के रोके थोड़े ही रुकती है ?’
तब एक दूसरी पणिहारी बोली – ‘नहीं वीरा ! स्त्री कभी कहीं नहीं जाती है, पर तुमने उसका घोर अपमान और दुर्दशा की| इसलिए तुम्हारी स्त्री गई, नहीं तो कहीं नहीं जाती |’ इस प्रकरण पर किसी कवि ने कहा है –
‘ भलां भलां री धण गई, तिरसिंगां तिरसिंग|
रानां तुरी हिंडोळिया, खींदा रै नरसिंग ||
( अच्छों-अच्छों की स्त्रियाँ चली गई, चाहे वे कितने ही बड़े और धन्तरसिंह क्यों नहीं हो? जाँघों में घोड़े झुलाने वाले खींदा के पुत्र नरसिंह से बेहतर इसे कौन समझ सकता है ? ) ( नैणसी से साभार )
Aidansingh bhati

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