रिमझिम रिमझिम बरखा की फुहारें पड़ रहीं थीं | महेबा की धरती हरी भरी हो उठी थी | पेड़ों पर नए नए पत्ते उस हरीतिमा में नया उजास पैदा कर रहे थे | मंद मंद चलती पवन और आकाश में तैरती घन-घटाएं सिणली के तालाब व उसकी पाल की शोभा चौगुनी कर रहीं थीं | बादलों की गर्जन के साथ ही मोरों का बोलना और किरतियों के झूलरे सी तीजणियों की कलकल हंसी सिणली के तालाब पर इत्र सी तैर रही थी कि अचानक झूलों की गति थम गई | तीजणियां ‘बचाओ!बचाओ! करतीं चारों तरफ भागने लगी | सुगंध के झोंके की जगह मारकाट और चिल्लाहटें पसर गईं | गाँव तक खबर पहुँचती तब तक पाटण का सूबेदार हाथीखान तीजणियों का हरण कर भाग चुका था | गाँव के लोग हाथ मलते रह गए | महेबा का राजकुमार जगमाल महेबा से दूर था और गाँव में हाथीखान का पीछा करने का बल नहीं था |
महेबा में आक्रोश उतर आया था | यह विक्रम की 15 वीं शताब्दी थी | रावल माला महेवा में तप रहे थे | यह रावल माला अपनी भक्तिमति राणी रूपांदे की संगति में रावल मल्लीनाथ कहलाए | वे जबरदस्त योद्धा और संत हुए हैं | आज उन्हीं के नाम से यह अंचल मालाणी कहलाता है | कहावत भी है –
‘तेरे तुंगा भांगिया माले सलखाणी |’
इन्ही रावल मल्लीनाथ का राजकुमार जगमाल बड़ा ही युद्ध-विशारद, तलवार का धनी और महत्वाकांक्षी था | जब वह बाहर से आया तब उसका खून खौल उठा | गुजरात हाथीखान से टकराने और तीजणियों को मुक्त कराने के लिए कसमसाने लगा | उसकी आँखों में खून उतर आया था | उसने अपने प्रधान भौपतजी हुल से कहा –‘ ठाकरां ! देश की इज्जत उतार कर हाथीखान ज़िंदा बैठा है और हम हैं कि अन्न खा रहे हैं | धिक्कार है इस तरह ज़िंदा रहने पर | भौपतजी तब नम्रता से बोले थे – ‘कंवरां ! धेजो राखो | अगर इस अपमान को ब्याज सहित नहीं धोया तो मेरा नाम भी भौपत हुल नहीं | मैं गुजरात की छाती चीर कर तीजणियों को इसी महेबे में लाऊँगा और सिणलै तालाब की पाळ पर वे आपको लूहरें गातीं और झूले झूलतीं दिखेंगी | पर राजकुमार जगमाल को चैन कहाँ? उसने तो पगड़ी नहीं बाँधने, हजामत नहीं बनाने और धुले कपडे नहीं पहनने की प्रतिज्ञा कर ली, आखड़ी ले ली | सिर पर काला कपड़ा बांध लिया | वह अहमदाबाद पर चढ़ाई करने की योजना बनाने लगा |
उधर तीजणियों का बुरा हाल था | लुटी-पिटी वे पाटण के किले में कैद कर दी गईं | हाथीखान लुटेरा था, जो अहमदाबाद के सेनापति महमूद बेग को सदैव प्रसन्न रखने का प्रयत्न करता था | इस बार अच्छा मौक़ा था, अपने मालिक को खुश करने का | यद्यपि उसके सैनिक-सिपहसालार चाहते थे कि इन रूपसी-तीजणियों का बंटवारा कर लिया जाय, पर उसने किसी की भी नहीं सुनी | उसे अपने की नजरों में चढ़ने का लोभ थाऔर वह उसे पूरा करने की योजना बनाने लगा था |
इधर पाटण के किले में बंद तीजणियों ने अन्न-पानी लेने से इन्कार कर दिया था | वे हाथीखान से बोलीं थीं – ‘ हरामी! ऐसे जीवन से तो हम मरना पसंद करेंगी | लानत है ऐसे जीने पर | मन में भी पर-पुरुष का नाम आना पाप समझतीं हैं हम |’ सुनकर हाथीखान उबाल खा गया था | पर होनी को कुछ और ही मंजूर था | इस घटना की खबर अहमदाबाद पहुँच गयी थी | महमूद बेग की पुत्री शहजादी गींदोली ने इस खबर को सुना | तीजणियों के प्रण से वह प्रभावित हुई | उसे आश्चर्य हुआ कि कोई राजपाट भी ठुकरा सकता है ? उसे इन रूपसियों ने ललचाया | अपने पिता महमूद बेग से गिंदोली बोली –
‘ अब्बा हुजूर ! सुना है आपके सिपहसालार हाथीखान ने महेबा लूटा है और लूट का बहुत सा माल लाए हैं | ‘तुमने ठीक सुना है शहजादी ! हाथीखान एक बहादुर सिपाही है, उसने हमारा नाम रौशन कर दिया है |’
‘पर सुना है अब्बा हुजूर ! सुना है कि लूट में वे औरतें भी लाए हैं और उसे आपके हरम में भेजना चाहते हैं, यह तो ठीक नहीं है अब्बा हुजूर !’
‘मर्दों की बातों में दखलंदाजी नहीं किया करते हैं, शाहजादी !’ महमूद बेग तीखेपन से कह तो गया, पर जब शाहजादी गिंदोली की आंखों में आंसू देखे तो वह तड़फ उठा – रोओ मत ! रोओ मत ! मेरी दुलारी, क्या चाहती हो तुम ?’
‘मैं उन औरतों से मिलना चाहती हूँ अब्बा हुजूर ! सुना है उन्होंने अन्न-पानी छोड़ दिया है | फिर वे जिन्दा कैसे रहेंगी अब्बू !’ गिंदोली ने भोलेपन से पूछा तो महमूद बेग बड़बड़ाया – ‘यही तो मुसीबत है ! मरने पर तुल जाती है ये हिन्दू औरतें | लाहौलविलाकुब्ब्त ! किसी की किसी की बात मानती भी तो नहीं है ?’
पर शहजादी गिंदोली ने अपने अब्बू को मना लिया था | वह तीजणियों से मिलने पाटण जा पहुंची | उन तीजणियों की हालत देखी तो उसका हृदय चीख उठा | वह सुख-सुविधाओं में पली थी, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती ही नहीं थी | बंदी औरतों को देखकर वह सिहर उठी | उसने एक तीजणी से कहा – ‘ बहन! क्यों सता रही हो, अपने आप को ? मान जाओ इन लोगों की बात | औरत को आखिर क्या चाहिए घर-बार, धन-दौलत, देह-सुख ? महेबा से तुम्हें यहाँ ज्यादा सुख मिलेगा | मेरी बात....., शहजादी ने वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि एक झन्नाटेदार हाथ पड़ा, उसके गाल पर | उस औरत ने थू कहते हुए थूक दिया था जमीन पर | शहजादी की रुलाई फूट पड़ी | सैनिकों ने उस औरत की पिटाई करनी शुरू कर दी थी, पर गिन्दोली ने उन्हें रोक दिया था | गिंदोली ने आखिरकार उन तीजणियों को मना ही लिया था | उसने आश्वासन दिया कि वह उन्हें यहाँ से निकालने में मदद करेगी | तीजणियां रोटी-पानी लेने लगीं थीं |
शहजादी गिंदोली ने अपने अब्बा से कहकर पाटण के एक बाग़ में उन तीजणियों को ठहरा दिया | ‘अच्छी जगह पर रखने और अच्छे व्यवहार से शायद रूपसियों का मन बदल जाय |’ महमूद बेग भी खुश था | हाथीखान अपनी तरक्की इंतजार कर रहा था | उसने पाटण के बाग़ की चौकसी के पुख्ता प्रबंध कर दिए थे | समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था |
उधर प्रधान भौपतजी हुल परेशान था | कुंवर जगमाल जब जिद ठान लेते हैं तो उसे पूरा करके ही दम लेते हैं | पर पाटण के किले को भेदना और तीजणियों को छुड़ाना बड़ा ही टेडा काम था | महेबा की शक्ति और सामर्थ्य से बाहर | पर वह हार मानने वाला नहीं था | उसने अपने हेराऊ (जासूस) पाटण भेज दिए थे और वह तैयारी कर रहा था | कुंवर जगमाल का मान कैसे रखा जाय, प्रधान हुल इसे अंजाम देने में लगा था | वह घोड़ों को घी पिला रहा था, पाटण और अहमदाबाद के मार्गों पर उन्हें दौड़ा रहा था, ताकि जब अवसर आए तब वे अड़ें नहीं | भौपतजी हुल ने अपने विश्वस्त साथियों में से इक्कीस जवान छांट लिए थे | उन्हें पाटण के मार्गों से परिचित कराया |
दिन और रात अपनी गति से चल रहे थे | प्रधान हुल बाट देख रहा था और आखिरकार अवसर हाथ आ ही गया | पाटण में गणगौर की सवारी ठाट-बाट से निकली | पूरे सुरक्षा घेरे में सवारी थी और शहजादी गिंदोली भी शाही सवारी में गणगौर के काफिले के साथ चल रहीं थीं | वह आई तो तीजणियों को मानाने थी, पर उनके सानिध्य में पाटण की होकर रह गई थीं |हाथीखान भी खुश था, वह शहजादी की खुशामद में लगा था, शायद शहजादी रीझ कर उसे ही पति बना ले | फिर तो पूरे गुजरात में उसका डंका बजेगा | शहजादी गिंदोली की वह हर इच्छा पूरी कर रहा था | इसीलिए न चाहते हुए भी उसने शहजादी को गणगौर की सवारी देखने जाने दिया |
तीजणियों के बगीचे की चौकसी बढ़ा दी थी | शायद त्यौहार का फायदा उठाकर जगमाल यहाँ तक नहीं पहुंच जाय | पर जो डर था, वह नहीं हुआ और जिसका डर नहीं था, वह हो गया | प्रधान भौपतजी हुल के प्रशिक्षित साथी अचानक प्रकट हुए और गिंदोली को पालकी से उठाकर छूमंतर हो गये | जैसे धरती फोड़कर निकले हों और आकाश में समा गये हों | बस भौपतजी हुल के शब्द हाथीखान के कानों में गूँज रहे थे –‘ महेबा के कुंवर जगमाल का प्रधान भौपत हुल शहजादी को ले जा रहा है, हिम्मत हो तो पकड़ लो |’
और फिर पाटण-अहमदाबाद के मार्गों पर दौड़े हुए प्रधान भौपत हुल के एराकी-घोड़े बाज की तरह महोबे के मार्गों पर झपटने लगे | हाथीखान के घुड़सवारों ने जब तक पचास कोस तय किए, तब तक प्रधान भौपत हुल के एराकी-घोड़े महोबे की राजधानी खेड़ पहुँच चुके थे | मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी और काला कपड़ा सिर पर बांधे कुंवर जगमाल उदास बैठे थे, कि प्रधान भौपत हुल ने जुहार कर कहा –‘महमूद बेग अहमदाबाद के सेनापति की शहजादी गिंदोली हाजिर है हुकम ! गुजरात की सबसे बड़ी तीजणी |’
मलिन मुख जगमाल ने देखा, जैसे आसमान का चाँद धरती पर उतर आया हो | गिंदोली थर-थर काँप रही थी | वह चेतना-शून्य सी हो गई थी | जगमाल ने खारी नजरों से भौपतजी हुल को देखा और बोले – ‘वाह ठाकरां, वाह ! अच्छा बदला लिया, अच्छी रजपूती दिखाई | मुझे तीजणियां चाहिए, किसी दूसरे की बहन-बेटी नहीं |’
‘इसीलिए तो यह सब किया है कंवरां ! अब तो हाथीखान खुद हाजिर होगा तीजणियों को लेकर |’
हुल की नीति सुनकर जगमाल चुप हो गया | हुल ने गिंदोली का अलग डेरा लगा दिया | पूरी चौकसी बरती गई | गिंदोली को सातों सुख थे, पर वह बंदिनी थी | अब उसे तीजणियों की स्थिति मालूम हुई |
‘सच्चा सुख स्वतंत्रता है, मन का सुख |’ उसे एक तीजणी की कही बात याद आई | एक तीजणी ने उसे कहा था – ‘ कंवर जगमाल और भौपतजी हुल हमें जरूर छुड़ाने आयेंगे |’ एक दूसरी बोली थी – ‘जगमाल की तलवार का पानी अभी मरा नहीं है शहजादी !’ तीसरी ने कहा था – ‘ जगमाल जोधा है |’ ‘जगमाल रणबंका है |’ जगमाल महेबे का रतन है |’ तीजणियों की बातें सुनते सुनते उसके कान पक गये थे | वही रणबंका जगमाल आज गिंदोली के सामने था | पर जगमाल के मन में गिंदोली के प्रति कोई आकर्षण नहीं था | आँखें तक नहीं मिलाई थीं उसने | कैसा है यह जगमाल ? उसके मन में जगमाल के लिए पहली बार एक अंकुर फूटा | दूसरे दिन जगमाल उसके डेरे में हाजिर था | छाया की तरह साथ में भोपत हुल | जगमाल की तरह के मलिन वेश-भूषा में पचासों योद्धा, सिर पर काले कपड़े लपेटे, दाढ़ियाँ बढाए | गिंदोली की सेवा में लगी डावड़ी ने भी जगमाल की वीरता का वैसा ही वर्णन किया जैसा वर्णन तीजणियों ने किया था | वही जगमाल आज उसके डेरे में आया था | गिंदोली के मन में फिर एक लहर उठी, उसे नजर भर देखने की | पर वह परदे की ओट से ही बोला – ‘शहजादी ! प्रधानजी आपको उठा लाए, इसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ| आपको आपके अब्बा हुजूर के पास बाइज्जत पहुंचा दिया जायेगा, बस आप अब्बा हुजूर को तीजणियों को छोड़ने का कागद लिख दें |’
गिंदोली ने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी थी | वह तो तीजणियों की मुक्ति चाहती ही थी | उन्हें छुडाने की तजबीज देख ही रही थी, कि उसका खुद का अपहरण हो गया | महेबा के लोग उससे मिले थे | तीजणियों के सम्बन्धी माँ-बाप, बहन-भाईयों को उसने आश्वस्त भी किया था | यद्यपि वह खुद अपहृत थी, पर अब वह खुश थी | उसके मन में एक चाहना पनपने लगी थी |पर उसके फलवती होने में बड़ी देर थी | बड़ा फासला था |
गिंदोली के कागद का जवाब महमूद बेग ने तुरंत ही दिया था, बड़ी उतावली के साथ | वह अपनी बेटी को देखने को तड़फ रहा था | गिंदोली उसे जान से भी प्यारी थी, उसे छुडाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था | वह हाथीखान को उस दिन के लिए कोसने लगा, जिस दिन वह तीजणियों का अपहरण कर लाया था | न तो हाथीखान तीजणियों का अपहरण कर लाता और न ही शहजादी दुश्मन के हाथों में पड़ती | पर अब क्या हो सकता था ? वह बेबस बैठा हाथ मल रहा था कि जगमाल का दूत गिंदोली का कागद लेकर पहुंचा | उसके जान में जान आई | दूत को उसने मान-सम्मान के साथ विदा किया और अपना हरकारा संदेश के साथ महेबे दौड़ाया | जगमाल का दूत वापिस पहुंचता उससे पहले ही महमूद बेग का हरकारा खेड़ पहुँच चुका था | लिखित फरमान लाया था हरकारा | उसने सन्देश पढ़ा – ‘अहमदाबाद के जाँबाज नवाब महमूद बेग ने फरमाया है कि आपके प्रधान ने बड़ा ही खराब काम किया है | इसे हम कभी भी माफ़ नहीं करेंगे |’ दूत के वाक्य पूरा करने से पहले ही भौपतजी हुल की तलवार म्यान से बाहर निकल आई | कुंवर जगमाल ने उसे शांत किया |
‘अपनी बात आगे बढाओ दूत |’ जगमाल शान्ति से बोला | दूत बोला – ‘नवाब साहब अपनी शहजादी के बदले में तीजणियों को छोड़ने को तैयार हैं, पर पहले शहजादी को हमारे साथ भेजना होगा |’ दूत के लिए आराम की व्यवस्था कर जगमाल ने प्रधान के साथ विचार-विमर्श किया | यह टी रहा कि नवाब तीजणियों को लेकर मालाणी की कांकड़ तक आए और बदले में शहजादी को ले जाए | दूत जवाब लेकर चला गया | जगमाल तीजणियों के आने के दिन का इन्तजार करने लगा |
गिंदोली अपने डेरे में अपनी आजादी के दिन का इन्तजार कर रही थी, पर उसके मन पर जगमाल की तस्वीर रचने लगी थी | जगमाल राजपूती का प्रतीक था | वीरता का दहकता पुंज | शौर्य का आगार | खूबसूरती का खजाना | पौरुष का प्रतीक | घोड़े दौडाता, तलवार चमकता जगमाल |
गिदोली के मन पर छाने लगा था वह रूप | तीजणियों के साथ हुई उनकी बातचीत उसके मन में उभरने लगी | ‘हिन्दू नारी जीवन में एक ही पुरुष की कामना करती है शहजादी ! हम सात जन्मों में भी वही वर चाहती हैं |’ गिंदोली परेशान हो रही थी | उसके मन में जगमाल की तस्वीर बन रही थी और जगमाल था कि पर्दा हटाकर उसे एक नजर भी नहीं देख रहा था | नवाब के दूत का संदेश लेकर आने पर जगमाल स्वयं गिंदोली से मिला था | पर्दे की ओट से ही उसने बात की थी – ‘शहजादी ! आपके अब्बा हुजूर का सन्देश आया है, आप जल्द ही आजाद होंगी | हमें हमारी तीजणियों के आने का इन्तजार है | इस बीच आपको इस तकलीफ में रखना पड़ रहा है, इसके लिए हमें अफ़सोस है |’
जगमाल का पौरुष में सना स्वर, उसका संयम, उसकी इंसानियत गिन्दोली की आत्मा में उतर गई | जगमाल को उत्तर उसके मन ने दिया | उसके मन ने तड़फ कर कहा – ‘कुंवरजी ! मुझे नहीं जाना अहमदाबाद के महलों में | आपके खेड़ का यह डेरा ही मेरा जीवन है |’ पर वह कह नहीं सकी | उसके बीच हिदू-मुसलमान की दीवार खड़ी थी | बादशाह अलाऊद्दीन की पुत्री और सोनगरा वीरमदेव की कहानी वह सुन चुकी थी | मरने से पहले तक वीरमदेव ने ‘हाँ’ नहीं कही थी शादी की | ‘पर प्रेम जात-पांत नहीं देखता है |’ गिन्दोली का मन बोल उठा | मैं शादी करूंगी तो जगमाल से ही | उसने मन ही मन जगमाल का वरण कर लिया | वह अपनी डावड़ी से हिन्दू रीति-रिवाज पूछने लगी थी | डावड़ी हंसकर बोली थी – ‘शहजादी साहिबा ! आप क्यों पूछ रहीं हैं यह सब ?’ तब गिंदोली ने उसे अपने मन की बात बताई थी | डावड़ी का तो मुंह खुला का खुला ही रह गया था | वह चेतना लौटने पर बोली – ‘ऐसा संभव नहीं है शहजादी, यह सब तो किस्से-कहानियों में होता है |’ फिर तो में भी एक किस्सा बन जाऊंगी |’ कहते हुए वह डावड़ी से लिपट गई थी | उसने डावड़ी से अलग होते हुए कहा – ‘ मेरी बहना ! प्रेम छोटा-बड़ा, जात-पांत, मान-अपमान नहीं देखता है | जिसको मन चाहने लगता है तब संसार में उसे दूसरा दिखाई ही नहीं देता है |’ डावड़ी की तो दुनिया ही बदल गई | एक गुलाम को शहजादी ने बहन कहा | उसकी आँखें बहने लगीं | गिंदोली ने उसे फिर प्रेम से चिपकाकर थपकी दी | डावड़ी बहनापा जताते बोली – ‘भगवान करे आपकी जोड़ी सारस और चकवा की जोड़ी बने |’ गिंदोली के पौर-पौर में प्रेम का तार समा गया | चकवा और सारस के बाद वह तीसरी जोड़ी बनाएगी – ‘गिंदोली-जगमाल’ | उसके मन का प्रेम हँस पाबासर में तैरने लगा | उसके मन में प्रेम फुहार बरसने लगी | वह उस फुहार में नहाने लगी | उसके मन-सरोवर में प्रीत-कमल खिलने लगे | मन हिरणी सा प्रेम की कुलांचें भरने लगा | जगमाल की बोली उसके रोम-रोम में समा गई | इधर गिन्दोली प्रेम समन्दर में नहा रही थी, उधर इन सबसे अनजान था जगमाल | उसकी तो चिंता थी, तीजणियों को जल्द से जल्द महेबा लाने की | उसने प्रधान हुल से कह रखा था – ‘प्रधानजी ! कहीं हाथीखान धोखा तो नहीं देगा ? हम तीजणियों के महेबे की धरती पर पाँव धरने के बाद ही शहजादी को छोड़ेंगे |’
पर अड़ गया था हाथीखान – ‘पहले हमारी शहजादी हमारे पास आएगी, फिर हम तीजणियों को छोड़ेंगे | महेबे की धरती पर तीजणियों के पाँव पहले नहीं पड़ सकते |’ जगमाल को इस झंझट का पता था | उसने भी तलवार म्यान से बाहर निकाल ली थी – ‘किसकी तलवारों में पानी है जो कांकड़ पर आई हुई तीजणियों को रोक सके ?’ हाथीखान इस जवाब के लिए तैयार नहीं था | ऐसा बढ़ता जवाब दिया था जगमाल ने कि उसके मन ने चाहा कि महेबे की धरती को रौंद डाले ? पर सवाल शहजादी का था | वह मन मसोस कर रह गया | तीजणियों और शहजादी को एक खुले मैदान में लाया गया | महमूद बेग ने पहले तीजणियों को छोड़ने का हुक्म दिया | इधर शहजादी जाकर अब्बा के कलेजे से लिपट गई | प्रधान भौपतजी हुल सावधान था | तीजणियों को सुरक्षित घेरे में खेड़ रवाना किया ही था कि हाथीखान जगमाल के दल पर टूट पड़ा | पर यहीं भूल कर गया था हाथीखान | जगमाल के तीन तालियाँ बजाते ही सैकड़ों-हजारों जगमाल प्रकट होने लगे | बड़गड़ां बड़गड़ां बड़गड़ां घोड़े दौड़ने लगे | खचाक खचाक खचाक तलवारें चलने लगीं | रुण्ड तलवारें चलाते धरती पर गिरने लगे | मुंड हवा में उड़ने लगे | जिधर देखो उधर ही काला कपड़ा सिर पर बांधे, मैले वस्त्र पहने, बढ़ी हुई दाढ़ियों के साथ शत-शत योद्धा | हाथीखान और महमूद बेग जान बचाकर भाग छूटे | उसकी सेना में अफवाह फैल गयी थी कि जगमाल को भूत सिद्ध है |चारों तरफ जगमाल जैसे हजारों भूत | जगमाल की इस युद्ध-पद्धति का शिकार हो गए थे हाथीखान और महमूद बेग | चारों तरफ जगमाल के लोकाख्यान तैरने लगे थे –
पग पग नेजा पाड़िया, पग पग पाड़ी ढाल |
बीबी पूछे खान ने, जग कैता जगमाल ||
रोता- पिटता महमूद बेग अहमदाबाद पहुंचा |जगमाल के भूतों से घबराया वह शहजादी को भी भूल गया | शहजादी वहीं छूट गई थी, महेबे की कांकड़ पर | पर अब क्या हो सकता था ?
और उधर महेबे में घर-घर में घी के दीप जल उठे | बरखा की फुहारों से महेबे की धरती भीग उठी | रूंखों की डालों पर फिर झूले लहराने लगे |
जगमाल ने उस दिन नए कपड़े पहने | सिर पर केसरिया पाग बाँधी | दाढ़ी बनाने के बाद सांवला मुखड़ा खिल उठा | अपनी नोकदार मूंछें संवारता वह अपने डेरे से निकला ही था, कि डावड़ी ने आकर जुहार की – ‘खम्मा घणी हुकम ! शहजादी गिंदोली तो अपने डेरे में ही बैठी है |
‘शहजादी अपने डेरे में बैठी है ? ऐसा कैसे हो सकता है ?’ जगमाल उतावली से बोला | डावड़ी बोली – ‘हुकम आप खुद चलकर अपनी आँखों से देख लें |’ जगमाल गिंदोली के डेरे पहुंचा | सामने खड़ी शहजादी गिंदोली मुस्करा रही थी | आज बीच में कोई पर्दा नहीं था | शहजादी जगमाल को एकटक देखती खड़ी रही | जगमाल जड़ हो गया था |
उसने कहा – ‘शहजादी आप यहाँ ?’
‘हाँ कंवरां ! मुझे महेबा छोड़ना अच्छा नहीं लगा ?’
‘पर आप यहाँ कहाँ रहेंगी, आपके अब्बा हुजूर परेशान होंगे, हम आज ही आपको अहमदाबाद पहुंचाने का प्रबंध कर देते हैं |’ एक ही सांस में कह गया जगमाल |
पर गिन्दोली ने जाने से इन्कार कर दिया | उसने अपने मन की बात बता दी थी जगमाल को - ‘वह यहीं रहेगी, महेबे में, खेड़ में |’ प्रकट ही शहजादी बोली – ‘मैंने आपको पति स्वीकार कर लिया है, अब इस जन्म में तो आप ही मेरे पति हैं|’ जगमाल हतप्रभ रह गया | ‘यह क्या हो गया?’ उसने सपने में भी कभी ऐसा नहीं सोचा था ? उसके सामने धर्म-संकट पैदा हो गया | ‘वह यह सम्बन्ध स्वीकार नहीं सकता | दुनिया क्या कहेगी ?’ उसने मन ही मन सोचा और गिन्दोली से बोला – ‘शहजादी ! ऐसा नहीं हो सकता ? दुनिया क्या कहेगी?’ पर गिंदोली ने भी निर्णय सुना दिया था- ‘ वह यहीं रहेगी|’ बात महेबे के घर-घर में फैल गई |’ ‘गिंदोली कुंवर जगमाल से प्रेम करती है |’ जितने मुंह उतनी बातें | लोग जगह जगह चर्चा करने लगे | आखिरकार जगमाल शहजादी से बोला – ‘शहजादी साहिबा ! हमारी इज्जत पर बन आई है, आप मान जाएं, मैं आपको अहमदाबाद पहुंचाने की व्यवस्था कर देता हूँ |’
पर शहजादी अपने निश्चय पर अटल थी, अविचलित | बात उन तीजणियों के कानों तक भी पहुंची, जिनकी आपातकाल में शहजादी गिंदोली ने सुरक्षा की थी | ‘गिन्दोली जगमाल से प्रेम करती है | उसने जगमाल को पति रूप में स्वीकार कर लिया है | पर कुंवर जगमाल के सामने जात-धर्म आड़े आ रहे हैं |’ तीजणियों के मन को ठेस लगी | शहजादी ने उनकी संकट काल में मदद की थी, इस समय शहजादी संकट में है, हमें उनकी मदद करनी चाहिए | तीजणियों ने एक दूसरे से सम्पर्क किया | उन्होने अपने अपने घरों में चूल्हे नहीं जलाए | अन्न-जल नहीं लिया | लोगों ने रावल मल्लीनाथ के पास जाकर पुकार की |रावल मल्लीनाथ ने जगमाल को समझाया | रावल मल्लीनाथ जात-धर्म से ऊपर उठे योगी थे | जगमाल गिंदोली के प्रेम की तरलता के आगे पराजित हो गए | उनकी आँखों में भी गिंदोली का प्रेम लहरा उठा | पाबासर का प्रीत का हँस जगमाल के मन-सरोवर में तैरने लगा | उसने गिंदोली के डेरे की तरफ कदम बढाए | हवाओं में खुशबू तैरने लगी | रूंखों पर प्रीत के पंछी कलरव करने लगे | शहजादी गिंदोली की सवारी महलों की तरफ बढ़ने लगी थी | तीजणियों ने इस प्रीत की स्वीकृति की तान छेड़ी –
आगे आगे गींदोलणी
पाछै जगमाल कुँवार
धीर रो ए जगमाल कुँवार
म्हारौ छैल रुस्यौ जाय ए, गींदोलणी |
आज भी गिन्दोली-जगमाल की प्रीत के गीत गाए जाते हैं | गणगौर भौळाने (विसर्जन)के दिन सारा राजस्थान इस प्रीत को याद करता है | तीजणियाँ आज भी शहजादी गिंदोली याद करती घूमर रमती हैं | प्रेमी चितवनों में आज भी पाबासर के हँस तैरने लगते हैं | लोकाख्यानों में इस अमर - प्रीत का यह दोहा पाबासर के हँस सा तैर रहा है –
गींदोली गुजरात सूं, असपत री धी आण |
राखी रंग-निवास में, थें जगमाल जुवाण ||
इस भारत भूमि पर कई वीर योद्धाओ ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने धर्म संस्कृति और वतन पर खुद को न्यौछावर कर दिया। सत् सत् नमन है इन वीर योद्धाओं को।
शनिवार, 20 जून 2015
गिन्दोली-जगमाल की अनोखी प्रेमकथा
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