शनिवार, 20 जून 2015

कुळ में है तो आव सुजाणा !

यह मध्यकाल था | धर्मान्ध औरंगजेब का शासनकाल | खंडेला के मंदिर पर उसकी सेना का आक्रमण हुआ | आसपास के राजपूत वीर मंदिर को बचाने के लिए एकत्र हुए और औरंगजेब की फ़ौज का सामना किया | पर मुगलदल टिड्डी की तरह उमड़ रहा था और मंदिर की रक्षा असंभव सी थी | इसलिए चारों ओर मंदिर बचाने का समाचार फैला | खंडेला के पास स्थित छापोली गाँव के श्यामसिंह के बेटे सुजानसिंह ने भी इस समाचार को सुना | वह उसी दिन मुकलावा ( शादी के बाद पत्नी को पहली बार ससुराल लाना ) लेकर आया था | उसने उसी समय केसरिया बाना धारण किया और मंदिर रक्षार्थ चल पड़ा –
‘झिरमिर झिरमिर महा बरसे, मोरां छतरी छाई |
कुळ में है तो आव सुजाणा, फ़ौज देवरै आई ||
अत्यंत बहादुरी से लड़ते हुए सुजानसिंह काम आया | कवियों ने इस वीरता को कविताओं में उतारा , उसे जसवंतसिंह जोधपुर, जयसिंह जयपुर और जगतसिंह मेवाड़ के समकक्ष मानकर उसकी वीरता की प्रशंशा की ---
‘नहीं आज जयसिंह जसराज जगतो नहीं,
दे गया छत्री पीठ सह दूजा |
प्रथी पळट हुवै पाट मिंदर पड़ै,
साद मोहन करै आव सूजा ||
महवसुत, गजनसुत, करणसुत मुगतगा,
रिधू अज परहरे धरम रेखा |
राख इब सांकड़ी वार तोसू रहै,
सरम मो परमची बिया सेखा ||
मानहर, मालहर, अमरहर वीसमै,
अवर रण मंडण नको आया |
असुर दळ ऊपटै आज हूँ एकलो,
जुडण कज पधारो स्याम जाया ||
साद सुण सेहरो बांध सिर ऊससै,
परब मन बेछ्तौ जिसो पायो |
वाद सुरताण सूं बांध खग वाहतो,
असुर दळ गाहतो बेग आयो ||
पाड़ पतसाह घड़ सवाड़ा पोढियो,
देव मंडळ सरी नको दूजो |
मार मेछाण घड़ जोत सूजो मिळै,
पथर पाड़ो भलां कोई पूजो ||
आज जयसिंह नहीं, जसवंतसिंह नहीं, जगतसिंह नहीं, दूसरे सारे क्षत्रिय पीठ दिखा गए | पृथ्वी पर उथल-पुथल हो रही है , खण्डेला का पाटवी मंदिर ढहाया जा रहा है , मोहन ( भगवान श्री कृष्ण ) पुकार रहे हैं , हे सुजानसिंह तुम कहाँ हो ?
माधवसिंह, गजसिंह, कर्णसिंह के पुत्र मुक्त हो गए | आज शत्रु धर्म रेखा लांघ रहे हैं | अब भी इस संकट काल में तुम समय को साध सकते हो | हे सेखा के वंशज मेरी लाज रक्खो |
आज मानसिंह, मालदेव और अमरसिंह के पोत्र इस धराधाम से चले गये | दूसरे कोई रणक्षेत्र में नहीं आये | असुरों का दल उमड़ रहा है , आज मैं अकेला हूँ , हे श्यामसिंह के सुत ! रणभूमि में उनका सामना करने शीघ्र आओ |
मोहन का साद सुन कर , शीश पर संग्राम का सेहरा बाँध उल्लास के साथ सुजानसिंह रण-भूमि में उछलता आया | दिल्लीपति सुलतान से दुश्मनी बांधता तलवार चलाता , असुर-दल को काटता वह अतिशीघ्र आया और शत्रुओं पर छा गया |
बादशाही सेना को संहारता वह वीर सुजानसिंह अंततः रण-भूमि में सदैव के लिए सो गया | देवमण्डल ने आगे बढ़कर उसकी अगवानी की, उस पर फूल बरसाए | दुश्मनों का संहार कर वह ज्योति ज्योति में समा गई | सुजानसिंह तो इस कारण से अमरता के पथ का राही बन कर चला गया | अब पीछे भले ही कोई पत्थर उखाड़ो, भले ही उनको पूजो |

Aidan Singh Bhati

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