मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में राठौड़ वीर अमर सिंह एक ऊंचे पद के मनसबदार थे। एक दिन शाहजहाँ के
साले सलावत खान ने भरे दरबार में अमर सिंह को हिन्दू होने कि वजह से अपमानित कर दिया.....
अमरसिंह राठौड़ के अन्दर राजपूती खून था...
सैकड़ों सैनिको और शाहजहाँ के सामने भरे दरबार में अमरसिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट
फेंका ! "ये कुछ ऐसा था जैसा 'ग़द्दर' फिल्म में सनी देओल हैंडपंप उखाड़ कर हज़ारों के सामने ही उस मुस्लिम
के जिस्म में ठोंकते है".....
शाहजहाँ कि सांस थम गयी..और इस शेर के कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने
लगे...अफरा तफरी मच गयी... किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे।
मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे। शाहजहाँ ख़ुद जनानखानें में भाग गया ! अमर सिंह निडर होकर अपनी हवेली लौट आये।
अमर सिंह के साले का नाम था अर्जुन गौड़। वह बहुत लोभी और नीच स्वभाव का था। बादशाह ने उसे
लालच दिया। उसने अमर सिंह को बहुत समझाया-बुझाया और धोखा देकर बादशाह के महल में ले गया।
वहां जब अमर सिंह आगरे के गढ़ के छोटे दरवाजे से होकर भीतर जा रहे थे, अर्जुन गौड़ ने पीठ पीछे से वार करके उन्हें मार दिया !
ऐसे हिजड़ों जैसी बहादुरी से उनको मरवाकर शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुआ ..उसने अमर सिंह की लाश को
किले की बुर्ज पर डलवा दिया। धिकार उस बादशाह को जिसनें उसकी वीरता की कद्र करनें की बजाय उनकी लाश को इस प्रकार चील-कौवों को खाने के लिए रखा !
अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के
बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों सरदारो से अपनें पति की देह लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में उनको अमरसिंह के परम मित्र बल्लुजी चम्पावत की याद आई और उनको बुलवाने को भेजा ! बल्लूजी अपनें प्रिय घोड़े पर सवार होकर पहुंचे जो उनको मेवाड़ के महाराणा नें बक्शा था !
उसने कहा- 'राणी साहिबा' मैं जाता हूं या तो मालिक की देह को लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच
गया। महल का फाटक जैसे ही खुला द्वारपाल बल्लु जी को अच्छी तरह से देख भी नहीं पाये कि वो घोड़ा दौड़ाते हुवे वहाँ चले गए जहाँ पर वीरवर अमर सिंह की देह रखी हुई थी !
बुर्ज के ऊपर पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।
बल्लूजी को अपनें मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उन्होंने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी,दोनों हाथों से
तलवार चला रहे थे ! उसका पूरा शरीर खून से लथपथ था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक उनके पीछे थे
जिनकी लाशें गिरती जा रही थीं और उन लाशों पर से बल्लूजी आगे बढ़ते जा रहा थे ! वह मुर्दों की छाती पर
होते बुर्ज पर चढ़ गये और अमर सिंह की लाश उठाकर अपनें कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाते हुवे घोड़े पर उनकी देह को रखकर आप भी बैठ गये और सीधे घोड़ा दौड़ाते हुवे गढ़ की बुर्ज के ऊपर चढ़ गए और घोड़े को नीचे कूदा दिया ! नीचे मुसलमानों की सेना आने से पहले बिजली की भाँति
अपने घोड़े सहित वहाँ पहुँच चुके थे
जहाँ रानी चिता सजाकर तैयार थी !
अपने पति की देह पाकर वो चिता में ख़ुशी ख़ुशी बैठ गई !
सती ने बल्लू जी को आशीर्वाद दिया- 'बेटा ! गौ,ब्राह्मण,धर्म और सती स्त्री की रक्षा
के लिए जो संकट उठाता है, भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। आपनें आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। आपका यश
संसार में सदा अमर रहेगा।' बल्लू चम्पावत मुसलमानों से लड़ते हुवे वीर गति को प्राप्त हुवे उनका दाहसंस्कार
यमुना के किनारे पर हुआ उनके और उनके घोड़े की याद में वहां पर स्म्रति स्थल बनवाया गया जो अभी भी मौजूद है !
जैसा इसी आलेख में है की बल्लूजी
के पास जो धोड़ा था जो मेवाड़ के
महाराणा ने बक्शा था तब बल्लूजी ने उनसें वादा किया की जब भी आप पर कोई विपति आये तो बल्लू को याद करना मैं हाजिर हो जाऊंगा उस के कुछ वक्त बाद में मेवाड़ पर ओरेंगजेब ने हमला कर दिया तो महाराणा ने उनको याद किया और हाथ जोड़कर निवेदन किया की है बल्लूजी आज मेवाड़ को आपकी जरुरत है ! तभी जनसमुदाय के समक्ष उसी घोड़े पर बल्लूजी दिखे और देबारी की घाटी में मेवाड़ की
जीत हुई ! बल्लूजी उस युद्ध में दूसरी बार काम आ गए ! देबारी में आज भी उनकी छतरी बनी हुई है !
बल्लूजी ने एक बार अपनी विपति के दिनों में लाडनूं के एक बनिये से कुछ कर्ज लिया इसके बदले में उन्होंने अपनी मूछ का बाल गिरवी रखा जो जीते जी वो छुड़ा न सके परन्तु उनकी छः पीढ़ी बाद में उनके वंसज हरसोलाव के ठाकुर सूरतसिंह जी
ने छुड़ाकर उसका विधि विधान के साथ दाह संस्कार करवाया और सारे बल्लुदासोत चम्पावत इकठे हुए और सारे शौक के दस्तूर पुरे किये ! इस तरह एक राजपूत वीर का तीन बार दाह संस्कार हुआ जो हिन्दुस्थान के इतिहास में उनके अलावा कही नही मिलता !!
(काश कोई इस तरह की सच्ची घटनाओं पर फिल्में बनाता तो लोगों को सही इतिहास का पता चलता )
डॉ.शक्ति सिंह 'खाखड़की'
इस भारत भूमि पर कई वीर योद्धाओ ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने धर्म संस्कृति और वतन पर खुद को न्यौछावर कर दिया। सत् सत् नमन है इन वीर योद्धाओं को।
सोमवार, 13 जुलाई 2015
बल्लूजी चम्पावत के तीन अनुठे दाह-संस्कार
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Rajputo ki sahi history koi nhi batata..Na hi in pr koi film..Pratap jese veer pr koi film kyo nhi bani abhi tak...Jbki alauddin jese nicho ko hero batakar pesh kiya jata hai..
जवाब देंहटाएंजय वीरवर
जवाब देंहटाएंbahut badiya
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंएक से बडकर एक सरमा हुऐ है राजपूतो मैं लेकिन इतिहास मैं पडाया नहीं । जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंBallu ji ki wife rani maya tank ki jankari do
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