उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया तथा एक
ही भार्या से विवाह किया ,परन्तु अपने वचन का निर्वाह करते हुए वह वीर दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ |
आईये आज परिचित होते है उस बांके वीर बल्लू चंपावत से जिसने एक बार वीर गति प्राप्त करने के बावजूद भी अपने दिए वचन को निभाने के लिए युद्ध क्षेत्र में लौट
आया और दुबारा लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की...
जोधपुर के महाराजा गजसिंह ने अपने जयेष्ट पुत्र
अमरसिंह को जब राज्याधिकार से वंचित कर
देश निकला दे दिया तो बल्लूजी चाम्पावत व
भावसिंह जी कुंपावत दोनों सरदार अमरसिंह के
साथ यह कहते हुए चल दिए कि यह
आपका विपत्ति काल है व आपत्ति काल में हम
सदैव आपकी सहायता करेंगे ,यह हमारा वचन है |
और दोनों ही वीर अमरसिंह के साथ बादशाह
के पास आगरा आ गए | यहाँ आने पर बादशाह ने
अमरसिंह को नागौर परगने का राज्य सौंप
दिया | अमरसिंह जी को मेंढे लड़ाने का बहुत
शौक था इसलिए नागौर में अच्छी किस्म के मेंढे
पाले गए और उन मेंढों की भेड़ियों से रक्षा हेतु
सरदारों की नियुक्ति की जाने लगी और एक
दिन इसी कार्य हेतु बल्लू चांपावत
की भी नियुक्ति की गयी इस पर बल्लूजी यह
कहते हुए नागौर छोड़कर चल दिए कि " मैं
विपत्ति में अमरसिंह के लिए प्राण देने
आया था ,मेंढे चराने नहीं | अब अमरसिंह के पास
राज्य भी है ,आपत्ति काल भी नहीं , अत: अब
मेरी यहाँ जरुरत नहीं है |
और बल्लू चांपावत महाराणा के पास उदयपुर चले
गए ,वहां भी अन्य सरदारों ने महाराणा से
कहकर उन्हें निहत्थे ही "सिंह" से लड़ा दिया |
सिंह को मारने के बाद बल्लूजी यह कर वहां से
भी चल दिए कि वीरता की परीक्षा दुश्मन से
लड़ाकर लेनी चाहिए थी | जानवर से
लड़ाना वीरता का अपमान है | और उन्होंने
उदयपुर भी छोड़ दिया बाद में महाराणा ने एक
विशेष बलिष्ट घोड़ी बल्लूजी के लिए
भेजी जिससे प्रसन्न होकर बल्लूजी ने वचन
दिया कि जब भी मेवाड़ पर संकट आएगा तो मैं
सहायता के अवश्य आऊंगा |
इसके बाद जब अमरसिंह राठौड़ आगरा के किले में
सलावत खां को मारने के बाद खुद धोखे से मारे
गए ,तब उनकी रानी हाड़ी ने सती होने के लिए
अमरसिंह का शव आगरे के किले से लाने के लिए
बल्लू चांपावत व भावसिंह कुंपावत
को बुलवा भेजा (क्योंकि विपत्ति में
सहायता का वचन उन्ही दोनों वीरों ने
दिया था) | बल्लू चांपावत अमरसिंह का शव
लाने के लिए किसी तरह आगरा के किले में
प्रविष्ट हो वहां रखा शव लेकर अपने घोड़े सहित
आगरे के किले से कूद गए और शव अपने
साथियों को सुपुर्द कर दिया पर खुद बादशाह
के सैनिको को रोकते हुए वीर-गति को प्राप्त हो गए |
इस घटना के कुछ समय बाद जब मेवाड़ के
महाराणा राजसिंह का मुग़ल बादशाह औरंगजेब
से युद्ध हुआ तो लोगों ने देखा कि बल्लू
चांपावत उसी घोड़ी (जो महाराणा ने उसे भेंट
दी थी ) पर बैठ कर तलवार बजा रहा है | आगरे में
तलवार बजाते वीर-गति को प्राप्त हुए बल्लू
चांपावत को आज दूसरी बार " देबारी "
की घाटी में तलवार बजाते हुए फिर वीर-
गति को प्राप्त होते हुए लोगों ने देखा |
इतिहास की इस अदभुत घटना को भले ही आज के
भौतिकवादी न माने पर मेवाड़ का इतिहास
इस बात को भुला नहीं सकता कि वह क्षत्रिय
मृत्यु के उपरांत भी अपना वचन निभाने के लिए
देबारी की घाटी में युद्ध लड़ने आया था |
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