रविवार, 20 दिसंबर 2015

भूतालाघाटी : जहां लड़ी गई हल्‍दीघाटी से भी बड़ी जंग

हल्‍दीघाटी की लड़ाई से भी बड़ी जंग भूतालाघाटी की थी और इस्‍लामी सल्‍तनत के खिलाफ यह मेवाड़ का पहला संघर्ष था। इसके चर्चे लम्‍बे समय तक बने रहे। यहां तक कि 1273 ईस्‍वी के चीरवा शिलालेख में भी इस जंग की चर्चा है। 'भूतालाघाटी की लड़ाई' की ख्‍याति के कारण ही 'खमनोर की लड़ाई' भी हल्‍दीघाटी की लड़ाई के नाम पर जानी गई।

गुलाम वंश के संस्‍थापक कुतुबुद्दीन एबक के उत्‍तराधिकारी अत्‍तमिश या इल्‍तुतमिश (1210-1236 ईस्‍वी) ने दिल्‍ली की गद्दी संभालने के साथ ही राजस्‍थान के जिन प्रासादाें के साथ जुड़े विद्या केंद्रों को नेस्‍तनाबूत कर अढाई दिन के झोंपड़े की तरह आनन फानन में नवीन रचनाएं करवाई, उसी क्रम में मेवाड़ पर यह आक्रमण भी था। तब मेवाड़ का नागदा नगर बहुत ख्‍याति लिए था और यहां के शासक जैत्रसिंह के पराक्रम के चर्चे मालवा, गुजरात, मारवाड़, जांगल आदि तक थे। कहा तो यह भी जाता है कि नागदा में 999 मंदिर थे और यह पहचान देश के अनेक स्‍थलों की रही है। अधिक नहीं तो नौ मंदिर ही किसी नगर में बहुत होते हैं और इतनों के ध्‍वंसावशेष तो आज भी मौजूद हैं ही। ये मंदिर पहाड़ी और मैदानी दोनों ही क्षेत्रों में बनाए गए और इनमें वैष्‍णव सहित लाकुलिश शैव मत के मंदिर रहे हैं।

जैत्रसिंह के शासन में मेवाड़ की ख्‍याति चांदी के व्‍यापार के लिए हुई। गुजरात के समुद्रवर्ती व्‍यापारियों तक भी यह चर्चा थी किंतु व्‍यापार अरब तक था। इस काल में ज्‍योतिष के खगोल पक्ष के कर्ता मग द्विजों का प्रसार नांदेशमा तक था। कहने को तो वे सूर्य मंदिर बनाते थे मगर वे मंदिर वास्‍तव में वर्ष फल के अध्‍ययन व वाचन के केंद्र थे।

अल्‍तमिश की आंख में जैत्रसिंह कांटे की तरह चुभ रहा था क्‍योंकि वह मेवाड़ के व्‍यापार पर अपना कब्‍जा करना चाहता था। जैत्रसिंह ने उसके हरेक प्रस्‍ताव को ठुकरा दिया। इस पर अल्‍तमिश ने अजमेर के साथ ही मेवाड़ को अपना निशाना बनाया। चौहानों की रही सही ताकत को भी पद दलित कर दिया और गुहिलों के अब तक के सबसे ताकतवर शासक काे कैद करने की रणनीति अपनाई। यह योजना पृथ्‍वीराज चौहान के खिलाफ मोहम्‍मद गौरी की नीति से कोई अलग नहीं थी। उसने तत्‍कालीन मियांला, केलवा और देवकुल पाटन के रास्‍ते नांदेशमा के नव उद्यापित सूर्य मंदिर को तोड़ा, रास्‍ते के एक जैन मंदिर को भी धराशायी किया। नांदेशमा का सूर्यायतन मेवाड़ में टूटने वाला पहला मंदिर था। (चित्र में उसके अवशेश है,,, यह चित्र मित्रवर श्रीमहेश शर्मा का उपहार है।)

तूफान की तरह बढ़ती सल्‍तनत सेना को जैत्रसिंह ने मुंहतोड़ जवाब देने का प्रयास किया। तलारक्ष योगराज के ज्‍येष्‍ठ पुत्र पमराज टांटेर के नेतृत्‍व में एक बड़ी सेना ने हरावल की हैसियत से भूताला के घाटे में युद्ध किया। हालांकि वह बहुत वीरता से लड़ा मगर खेत रहा। उसने जैत्रसिंह पर आंच नहीं आने दी। गुहिलों ही नहीं, चौहान, चदाणा, सोलंकी, परमार आदि वीरवरों से लेकर चारणों और आदिवासी वीरों ने भी इस सेना का जोरदार ढंग से मुकाबला किया। गोगुंदा की ओर से नागदा पहुंचने वाली घाटी में यह घमासान हुआ। लहराती शमशीरों की लपलपाती जबानों ने एक दूसरे के खून का स्‍वाद चखा और जो धरती बचपन से ही सराहा होकर मां कहलाती है, उसने जवान ख्‍ाून को अपने सीने पर बहते हुए झेला।
इसमें जैत्रसिह को एक शिकंजे के तहत घेर लिया गया किंतु उसको योद्धाओं ने महफूज रखा और पास ही नागदा के एक साधारण से घर में छिपा दिया। अल्‍तमिश का गुस्‍सा शांत नहीं हुआ। उसने आगे बढ़कर नागदा को घेर लिया। एक-एक घर की तलाशी ली गई। हर घर सूनसान था। उसने एक एक घर फूंकने का आहवान किया। यही नहीं, नागदा के सुंदरतम एक एक मंदिर को बुरी तरह तोड़ा गया। हर सैनिक ने अपनी खीज का बदला एक एक बुत से लिया। सभी को इस तरह तोड़ा-फोड़ा क‍ि बाद में जोड़ा न जा सके...। तभी तो यहां कहावत रही है- 'अल्‍त्‍या रे मस मूरताऊं बाथ्‍यां आवै, जैत नीं पावै तो नागदो हलगावै।' इस पंक्ति मात्र चिरस्‍थायी श्रुति ने भूतालाघाटी के पूरे युद्ध का विवरण अपने अंक में समा रखा है।

इस घमासान में किस-किस हुतात्‍मा के लिए तर्पण किया जाता। जब पूरा ही नगर जल गया था। घर-घर मरघट था। चौदहवीं सदी में इस नगर को एक परंपरा के तरह जलमग्‍न करके सभी हुतात्‍माओं के स्‍थानों को स्‍थायी रूप से जलांजलि देने के लिए बाघेला तालाब बनवाया गया..।

(इस युद्ध की स्‍मृतियां तक नहीं बची हैं, इतिहास में एकाध पंक्तिभर मिलती है, मगर यह बहुत खास तरह का संघर्ष था। भूताला के पास ही एक गांव में पांच साल तक सेवारत रहने के दौरान मेरा ध्‍यान इस युद्ध की ओर गया था और करीब बीस साल तक अध्‍ययन- शोधन के बाद, पहली बार इस युद्ध का विवरण का कुछ अंश लिखने का प्रयास किया है... मित्राें को संभवत: रुचिकर लगेगा...)
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* चीरवा अभिलेख - वियाना ऑरियंटल जर्नल, जिल्‍द 21
* इंडियन एेटीक्‍वेरी, जिल्‍द 27
* नांदेशमा अभिलेख - राजस्‍थान के प्राचीन अभिलेख (श्रीकृष्‍ण 'जुगनू')

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