अशक्त और असक्षम महाराणा विक्रमादित्य के लिए बिना किसी प्रतिष्ठा सम्मान और मोह-माया के लिए युद्ध लड़ने वाले और पूरी निष्ठां, शौर्य और भरपूर रणकौशल का प्रदर्शन करने वाला रावत दादा चूण्डावत निःसंतान ही स्वर्गलोक को प्राप्त हुआ l रावत दूदा चूण्डावत के साथ उसका भाई कुँवर सत्ता चूण्डावत और कुँवर करमा चूण्डावत भी रणखेत रहे l ऐसी स्थिति में दूदा से छोटा भाई कुँवर सत्ता चूण्डावत जो की रावत होना था उसके काम आने पर सत्ता से छोटा भाई साईंदास चूण्डावत बेगूँ का रावत बना l उधर जब महाराणी हाड़ी कर्मवती के जौहर के साथ ही रावत दूदा चूण्डावत के अन्य सरदारों सहित जुझार होने पर, जब बाबर के हमला करने के भय से जब सुल्तान बहादुर शाह लौटा तब मेवाड़ के बचे हुए राजपूतों ने सुल्तान के सिपाहियों को चित्तौड़ से मार भगाया और जैसे तैसे पुनः चित्तौड़ पर कब्जा जमाया और महाराणा विक्रमादित्य को पुनः बूंदी से चित्तौड़ बुलाया और गद्दी पर बिठाया l सबने महाराणा को बहुत समझाया की अब भी समय है शासन सुचारू रूप से संभाल लेवें और पुरानी गलतियाँ न दोहरावें l लेकिन दुर्भाग्य मेवाड़ और उसके महाराणा का की महाराणा विक्रमादित्य के स्वाभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया और वह पूर्व की भांती ही अपना दुर्व्यवहार बनाये रखे l अब न तो उनकी माता महाराणी हाड़ी कर्मवती थीं, ना ही उनके मामा बूंदी के हाड़ा सूरजमल बचे थे जिन्होंने पूर्व में बड़े भाई महाराणा रतन सिंह से उनको बचाने के उद्द्योग में अपने प्राण न्योछावर करे थे और ना ही बार बार अपनी अपेक्षा और दुसरे उमराओं का अपमान सहने वाला रावत दादा चूण्डावत बचा था और साथ ही बेगूँ का नया वारिस रावत साईंदस चूण्डावत आयु में अभी छोटा था l महाराणा की रक्षा स्वयं उनके हाथ में थी की जैसा उनका व्यव्हार होता l
किन्तु उनमे कोई बदलाव नहीं आया वह पूर्व की ही भांति सामंतों का अपमान करते फिरते जैसे कभी कभी तो उच्च विचारक और राजनैतिक अनुभवी किन्तु साधारण कदकाठी के उमरावों को अपने कुछ पहलवानों से मल्ल युद्ध करने का प्रश्न पूछ कर उनके स्वाभिमान की परीक्षा लेना आदि था l परिणाम स्वरुप महाराणा की सेवार्थ केवल कुछ 100-200 पहलवानों को छोड़ साधारणतः चित्तौड़ में कोई शेष नहीं रहता l दूसरी ओर स्वामिभक्त रावत दूदा चूण्डावत का उत्तराधिकारी सत्ता से छोटा भाई यानि रावत साईंदास चूण्डावत भी स्वयं आयु में बहुत छोटा था l फलस्वरूप अब तो महाराणा की रक्षा बड़ी नाज़ुक हो चली थी l इसी बात का लाभ उठाते हुए एक दिन पूर्व महाराणा रायमलजी के बड़े पुत्र और महाराणा सांगा के बड़े भाई यानि कुँवर पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी और चित्तौड़ पर अपना कब्ज़ा कर लिया l यद्यपि महाराणा विक्रमादित्य को मारने के पश्चात् बनवीर उनसे छोटे भाई उदय सिंह जी को मारने के लिए उनके कक्ष में गया किन्तु वहाँ कुँवर उदय सिंह की धाय पन्ना ने पालने में सोये अपने स्वामी को छुपा दिया और उसकी जगह अपने पुत्र को रख दिया ऐसा करने से बनवीर ने उसके पुत्र को कुँवर उदय सिंह समझ कर मार दिया l अपने पुत्र का अद्वितीय बलिदान देकर पन्ना धाय कुँवर उदय सिंह को सुरक्षित स्थान की तलाश में पहले बूंदी-देवलिया-डूंगरपुर होती हुई कुम्भलगड़ जा पहुचीं l बनवीर के इस कृत्य के जवाब में कोई कुछ नहीं कर पाया क्यूंकि चित्तौड़ में चूण्डावत का कोई बड़ा प्रभावी व्यक्ति शेष नहीं रह गया था l कुछ समय तक चित्तौड़
ऐसे ही राम-भरोसे पड़ा रहा l दिल्ली की सल्तनत में बाबर काबुल में व्यस्त हो गया और बंगाल के तुर्कों शेर शाह सूरी ने उपद्रव कर जिससे दिल्ली पर दुश्मन कमजोर था l दूसरी ओर मांडू के सुल्तान को पहले
ही गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मार दिया था l और चित्तौड़ से युद्ध कर भागे सुल्तान बहादुर
शाह गुजरती पर बाबर ने हमला कर उसको
हरा कर कमजोर कर दिया था l यदि ये सब संयोग ना होता तो चित्तौड़ पर अवश्य ही कोई दूसरा शत्रु
कब्ज़ा कर लेता क्यूंकि बिन महाराणा के
मेवाड़ी फ़ौज कैसे लड़ती l कुछ वर्षों बाद जब महाराणा उदय सिंह बड़े हुए तब
रावत साईंदास ने महाराणा का राजतिलक किया l
ऐसी स्थिति में रावत साईंदास के दो काका जग्गा
चूण्डावत और सांगा चूण्डावत आयु और अनुभव में बड़े थे! उन्होंने चूण्डावत वंश की कुल परंपरा का निर्वहन करते हुए महाराणा उदय सिंह से निवेदन किया की आजकल चित्तौड़ पर दूसरी पुत्र बनवीर का अधिकार है, अब आप बड़े हो
चुके हैं, आदेश देवें तो हम चित्तौड़ पर आपका अधिकार करवा देवें l तब महाराणा का आदेश पाकर जग्गा चूण्डावत और सांगा चूण्डावत ने मेवाड़ी फ़ौज
की कमान सँभालते हुए चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया l मावली पास बनवीर के कुछ मुट्ठीभर सिपाहियों से छुटपुट मुकाबला होने के बाद जब बनवीर को उनके आने की खबर मिली तब वह अपने प्राण बचने के लिए भाग खड़ा हुआ l जग्गा चूण्डावत और सांगा चूण्डावत की वीरता और कर्तव्यपरायणता देखते हुए महाराणा उदय सिंह ने दोनों को रावत
की उपाधि से नवाजा और अपने विशेष
सलाहकारों उमरावों में सम्मिलित किया l अब मेवाड़ में
साईंदास, जग्गा और सांगा के रूप में चूण्डावतों के 3 मोर्चे
कायम हो गए थे जो हरवक्त महाराणा के लिए अपने
प्राण न्योछावर करने को उतारू थे l
ई.1562 में दिल्ली के बादशाह अकबर ने
मालवा के सुल्तान बाज़ बहादुर पर हमला कर दिया l
बादशाही सेना से शिकस्त पाकर बाज बहादुर
चित्तौड़ आश्रय लेने आ गया l घर आए
शरणार्थी की रक्षा करना
क्षत्रिय का परम धर्म मान कर महाराणा ने उसे आश्रय
दे दिया l जब अकबर को इसकी खबर
मिली तो वह नाराज हुआ, लेकिन चित्तौड़ पर
सीधा हमला करना उचित न समझ उसने
पहले दूसरी रियासतों पर कब्ज़ा जमाना उचित
समझा l अमेर के राजा भारमल और कछवाहा टोडरमल
की सहायता से उसने पहले जोधपुर फिर
बूंदी और ग्वालियर पर कब्ज़ा किया l अंत में
सिरोही पर कब्ज़ा करने के पश्चात् अकबर
ने चित्तौड़ को अधीनता स्वीकारने
के लिए महाराणा को चेतावनी भरा पत्र लिखा
जिसका महाराणा ने कोई जवाब नहीं दिया l
आखिर ई.1567 में अकबर ने चित्तौड़ पर चढाई कर
दी l
रावत साईंदास चूण्डावत भी अब तक
काफी बड़ा हो चूका था ओर उसके एक पुत्र
अमर सिंह चूण्डावत का भी जनम हो चुका
था l ऐसी स्थिति में सब उमरावों से विचार
विमर्श कर यह निष्कर्ष किया की एक बार
तो मुसीबत से किसी भी तरह छुटकारा पाया जाये l
सभी ने सुझाव दिया की सुरक्षा
की द्रष्टि से महाराणा का किले में रहना
उचित नहीं सो उन्हें सबने महारानियों और
कुँवारों सहित पहाड़ों में चले जाने को कहा और विश्वास दिलाया की लड़ने के लिए अभी
नौजवानों को ही मौका दिया जाये बाद में
अनुभवी लोगों की जरुरत
होगी l और साथ ही यह
भी आश्वासन दिया की पूर्व में
भी हमेश ही मुस्लिम सुल्तानों
को फ़ौज खर्च देकर लौटाया गया था तो इस बार
भी कुछ समझोता हो ही जायेगा
महाराणा निश्चिन्त रहें l तब सर्वसम्मति से महाराणा ने जयमल मेड़तिया और पत्ता चूण्डावत को किले का
सेनानायक बनाकर यह जिम्मेदारी दी l
अकबर की सेना ने चित्तौड़ का घेराव कर चारों
दिशाओं से शक्तिशाली हमले शुरू कर दिए l
मेवाड़ी सरदारों ने भी जबरदस्त
गोलीबारी कर दुश्मनों को दिखा दिया
की चित्तौड़ पर कब्ज़ा करना इतना आसान
नहीं है l रावत साईंदास चूण्डावत किले के
प्रथम द्वार में हरावल अधिकार के रूप में सूरजपोल पर अपने पुत्र अमर सिंह चूण्डावत और अन्य सरदारों सहित तैनात था l पत्ता चूण्डावत भी किले
रामपोले पर अपने सिपाहियों के साथ चित्तौड़
की रक्षार्थ तत्पर हुआ l खाद्य
सामग्री और गोला-बारूद ख़तम होने पर अंत
में किले की सभी क्षत्राणियों ने
जौहर किया l फिर सभी सरदारों ने केसरिया
वस्त्र पहनकर अंतिम जंग के लिए किले के फाटक खोल दिए और मलेच्छ सेना पर टूट पड़े l
रावत साईंदास चूण्डावत के जीवित रहते
चित्तौड़ के किले में प्रवेश करना नामुमकिन था l रावत
साईंदस चूण्डावत बड़ी बहादुरी
से लड़ता हुआ अपने इकलौते पुत्र अमर सिंह
चूण्डावत सहित काम आया l कुँवर अमर सिंह
चूण्डावत की आयु महज कुछ 13-14
वर्ष की ही थी l तब मुस्लिम सेना ने किले में प्रवेश किया जहाँ उनका सामना किले के सबसे बड़े योद्धा पत्ता चूण्डावत से हुआ l पत्ता चूण्डावत ने अद्वितीय शौर्य का परिचय दिया और असंख्य मुसलमानों को काटता हुआ जुझार हुआ l पत्ता चूण्डावत अकबर को अचम्भित करने वाली अनदेखी वीरता के लिए चित्तौड़ और मेवाड़ के इतिहास में अमर हो गया l
रावत साईंदास चूण्डावत के केवल एक पुत्र कुँवर अमर सिंह चूण्डावत हुआ जो चित्तौड़ के तीसरे
सके में पिता सहित काम आया l रावत साईंदास ने चित्तौड़ के पास अपने नाम से एक नगर सवा बसाया l
रावत साईंदास चूण्डावत बड़ा बलशाली योद्धा था और उसकी भुजाएँ बहुत बड़ी और शक्तिशाली थीं l इसका एक प्रमाण यह मिलता है की रावत साईंदास
चूण्डावत ने भैंसरोड़गड़ में एक लक्ष्मीनारायण का मंदिर बनवाया और वहाँ एक पत्थर पर अपने हाथ का निशान बनवाया जो की बाद में उसकी जागीर में ज़मीन नापने के नाप के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा l
चुण्डावत कुल रा सुरमा , रखवाळा वे दीवाण ।
मेवाड़ भौम हित कारणे , वे हँस हँस देता प्राण ।।
मेवाड़ भड़ किवाड़ .....
चुण्डावत मेवाड़......
जय माँ बायण जय एकलिंग जी
In veer ko koti koti namhan
जवाब देंहटाएंJay ek ling ji
जवाब देंहटाएंहुकम आप इसमें सांगा का और जगह का नाम और पत्ता को लड़ाई में उतारने पता और जग्गा के क्या संबंध पिता पुत्र थे जग्गा सांगा की बात महाराणा सांगा के समय कैसे हो सकती है फिर आपने दुदा का नाम लिया दुधा सांगा का पुत्र था यह कहानी कुछ मेरे को गोलमाल टाइप लगी जिसका संबंध आपस में बैठ नहीं रहा है सांगा जग्गा पत्ता दूदा मेरे समझ में नहीं आया शाइनिंग राजस्थान न्यूज़ से भगवत सिंह चुंडावत9983570934
जवाब देंहटाएंPTTA BHI MAHARANA KE SATH LADDA
जवाब देंहटाएंJay ho mevad ke vir yoddhha o
जवाब देंहटाएंAapko sat sat Naman
Govindsinh Chauhan
Asal chundawao ki olkhan farmao sa
जवाब देंहटाएंJai chundawat pariwar
जवाब देंहटाएंइसमें वीर कल्ला राठौड़ का नाम नहीं है जो कि जयमल राठौड़ के भतीजे थे। चूंडावत जी के पुत्र हल्दीघाटी महायुद्ध लड़े न कि चित्तौड़गढ़ युद्ध। यही नहीं राजा जयमल के पुत्र भी हल्दीघाटी युद्ध का हिस्सा रहे है।
जवाब देंहटाएंहल्दीघाटी युद्ध मे चुंडावत के पुत्र नहीं भतीजे थे
हटाएंहल्दीघाटी में रावत साईदास चूंडावत के भतीजे रावत कृष्णदास चूंडावत लड़े थे
हटाएंJai rajputana rawat
जवाब देंहटाएंइसमें तो कही चुंडावतो के मूलपुरुष का तो नाम ही नही जिनसे चुंडावत शाखा
जवाब देंहटाएंसब गुमा फिरा के बताया हे स्पष्ट कुछ नही है
Surveero ko mera koti koti pranam Jai mewar
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप का लेख ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी है ,
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