गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

महारानी चंदा की वीरता को सादर नमन्

लक्ष्मसिंह के सबसे बड़े कुमार अरिसिंह बहुत बहादुर राजकुमार थे। कई बार उन्होंने युद्ध में म्लेच्छों के छक्के छुड़ाकर अपनी माता के दूध को सार्थक किया था।
एक बार कुछ चंदाणा राजपूतों ने आकर उनसे विनती की, ‘‘कुँवर! कैलवाड़ा जिले में इन दिनों जंगली सूअरों ने आतंक मचाया हुआ है।’’
‘‘हमारे देश में और जंगली सूअरों का आतंक?’’
‘‘जी कुँवर!’’
‘‘आप निश्चित होकर जाइए,’’ अरिसिंह ने कहा, ‘‘हम जंगली सूअरों का सफाया करके उनकी चर्बी से अपने धनुषों की डोरी भिगोकर अवश्य मजबूत करेंगे।’’
और फिर योजना बनाकर अरिसिंह एक दिन पश्चिमी पहाड़ों की तरफ कैलवाड़ा जिले में जंगली सूअरों का शिकार करने के लिए निकले। उन्होंने कई सूअरों को देखते ही देखते यमलोक पहुँचा दिया था। लेकिन एक सूअर बहुत चालाक था। वह उनके तीर का निशाना नहीं बन पा रहा था। वे उस जंगली सूअर के पीछे अपने साथियों के साथ घोड़ा दौड़ाये चले जा रहे थे। सूअर इन लोगों के भय से बाजरे के एक खेत में घुस गया। उस खेत की रक्षा एक बालिका कर रही थी। उस बालिका का नाम था चंदा। चंदा मचान से उतरी और खेत के बाहर आकर घोड़ों के सामने खड़ी हो गयी। बड़ी नम्रता से उसने कहा, ‘‘राजकुमार! आप लोग मेरे खेत में घोड़ों को ले जाएंगे, तो मेरी बाजरे की फसल नष्ट हो जाएगी। आप यहाँ रुकें, मैं सूअर को मारकर लाती हूँ।’’
‘‘तुम और सूअर को मार दोगी,’’ कुँवर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘किसी अस्त्र-शस्त्र से शिकार करोगी या खाली हाथ ही!’’
‘‘बाजरे के पौधे से।’’
‘‘बाजरे के पौधे से और शिकार?,’’ कुँवर ने गंभीरता से कहा, ‘‘ऐ लड़की! कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रही?’’
‘‘राम...राम... मैं मजाक करूँ और वह भी राजकुमार से?’’
‘‘ठीक है, हम खड़े हैं यहाँ, जाओ मार लाओ सूअर को।’’
राजकुमार कुतूहलवश खड़े हो गये, वह समझ रहे थे कि यह लड़की भला एक पौधे से सूअर का शिकार कैसे कर सकती है? पर उन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस लड़की ने बाजरे के एक पेड़ को उखाड़कर तेज किया और खेत में निर्भय घुस गयी। थोड़ी ही देर में वह सूअर को मारकर ले आयी। लड़की का यह साहस, बल और युक्ति देखकर राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक लड़की ने बाजरे के नाजुक पेड़ से किस प्रकार एक जंगली सूअर का शिकार कर दिया?
राजकुमार बोले, ‘‘तुम्हारी शक्ति देखकर मैं आश्चर्य में पड़ गया हूँ। मुझे दुःख है कि तुम्हें देने के लिए कोई योग्य पुरस्कार इस समय मेरे पास नहीं है।’’
चंदा ने कहा, ‘‘अपनी गरीब प्रजा पर आप कृपा रखें, यही मेरे लिए बहुत बड़ा पुरस्कार है।’’
‘‘आप तो बहुत देशभक्त मालूम जान पड़ती हैं?’’
‘‘क्या आप देशभक्त नहीं हैं,’’ चंदा ने कहा, ‘‘भारत के बच्चों में देशभक्ति जन्मजात होती है, यह बात भली-भांति जान लो।’’
इतना कहकर वह अपने मचान पर चली गयी और राजकुमार सूअर को लेकर चलते बने। सायंकाल राजकुमार और उनके साथी घोड़ों पर बैठे जा रहे थे। तब उन्होंने देखा कि वही लड़की सिर पर दूध की मटकी रखे दोनों हाथों से दो भैंस की रस्सियां पकड़े जा रही है।
राजकुमार के एक साथी ने विनोद करने के लिए धक्का देकर उसकी मटकी गिरानी चाही, पर जैसे ही उसने घोड़ा बढ़ाया, चंदा ने उसका इरादा ताड़ लिया। उसने अपने हाथ में पकड़ी भैंस की रस्सी को इस प्रकार फेंका कि उस रस्सी में उस सवार के घोड़े का पैर उलझ गया। घोड़े के साथ ही वह सवार भी धड़ाम से भूमि पर गिर पड़ा।
इस निर्भय बालिका के साहस और सूझ-बूझ को देख अरिसिंह इस पर मुग्ध हो गये और हृदय में सोचा कि यदि इस लड़की से कोई संतान पैदा होगी, तो निःसंदेह बड़ी बलवान और देश का उद्धार करने वाली होगी। कुँवर ने चंदा से पूछा, ‘‘तुम किस की बेटी हो?’’
‘‘क्षमा करें कुँवर!,’’ चंदा ने सोचा कि राजकुमार पिता का नाम इसलिए पूछ रहे हैं, ताकि साथी को घोड़े से गिराने के अपराध में दण्ड दे सकें, ‘‘मेरा कोई कसूर नहीं है। आपका मित्रा मेरी गगरी गिराना चाहता था, इसलिए मैंने तो अपने दूध और मिट्टी की गगरी की रक्षा के लिए आपके साथी को उसकी कुचेष्टा का दण्ड दिया हैै।’’
‘‘तुम दण्ड देने वाली कौन होती हो?’’
‘‘यदि कोई आपके उस पर हमला करे, तो क्या आप उसका मुख फोड़ उत्तर नहीं देंगे।’’
‘‘देंगे, लेकिन आक्रमण करेगा तब ही तो।’’
‘‘नहीं, कुँवर आपकी नीति गलत है। राजा को पता होना चाहिए कि कौन शत्रु उस पर आक्रमण करने वाला है, क्योंकि राजनीति कहती है कि शत्रु कोई कुचक्र रचे, उससे पहले ही उस पर आक्रमण करके उसको ठण्ड़ा कर देना चाहिए।’’
‘‘आप तो बहुत बुद्धिमान हैं,’’ कुँवर ने पूछा, ‘‘किस गुरु से शिक्षा पायी है आपने?’’
‘‘अपनी माताश्री से।’’
‘‘धन्य हैं आपकी माता, जो आपको इतनी अच्छी शिक्षा दी। देश को आज ऐसी ही माताओं और तुम जैसी बेटियों की जरूरत है।’’
‘‘धन्यवाद,’’ फिर चंदा ने कहा, ‘‘कहीं आप बड़ाई के बहाने मुझसे विनोद तो नहीं कर रहे कुँवर?’’
‘‘राम...राम...मैं और किसी कुँवरी से विनोद करूँ,’’ कुँवर ने कहा, ‘‘लेकिन तुमने अपने पिताश्री का नाम नहीं बताया?’’
‘‘तो क्या आपने मुझे क्षमा नहीं किया? आप मेरे पिताश्री से क्यों मेरी शिकायत करने पर तुले हुए हैं?’’
‘‘क्षमा का तो प्रश्न ही तब उठता है, जब आपने कोई अपराध किया हो? आपने तो कोई अपराध किया ही नहीं, बल्कि कुचेष्टा करने वाले एक राजकर्मचारी को दण्ड देकर पुरस्कार पाने योग्य काम किया है। इसी के निमित्त हम आपके पिताश्री से भेंट करना चाहते हैं।’’
‘‘जी,’’ चंदा ने कहा, ‘‘मैं चंदाणा राजपूत की बेटी हूँ। यहीं अगली गली में मेरा मकान है।’’
‘‘ठीक है, चंदा! तुम जाओ और प्रसन्न रहो।’’
‘‘जी,’’ चंदा चल पड़ी, ‘‘जय एकलिंग।’’
‘‘जय एकलिंग!’’
यह बालिका चंदा कालांतर में राजमाता बनी, जिसने वीर हम्मीर को जन्म दिया और हम्मीर ने तुगलक को लडाई में हराकर दिल्ली से भगा दिया था

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें