महाराणा सांगा की मृत्यु से मानो भारत पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। राजस्थानी में किसी कीर्तिवान मनुष्य की मृत्यु पर मरसिया लिखे जाते हैं। राणा सांगा की मृत्यु पर राजस्थानी में एक चारण कवि ने ये मरसिया लिखा जो कि अत्यंत ही भावपूर्ण और उस महान राजा की ममृत्यु से होने वाली अपूरणीय क्षति को व्यक्त करता है.
ऊगो बिन सूर जेहवो अम्बर ,दीपक पाखै जिसौ दुबार .
पावस बिना जेहवी प्रथवी ,सांगा बिन जेहवो संसार .
बिन रिव बौम ,बसन जोती बिन,धाराहर बिन जसी धर .
जैसिहरा जैसी जानेवी ,तौ बिन प्रथवी कलपतर .
जलहर गयौ दूनी जीवाड़ण ,फबै नहीं दीपक फरक .
साहां ग्रहण मोखणौ सांगौ ,आथमियौ मोटौ अरक।
(बिना सूर्योदय के जैसे आकाश लगता है और जिस प्रकार शुक्ल प्रकाश के चन्द्रमा को मानो ग्रहण लग गया हो ,बिना बादल के जिस प्रकार पृथ्वी उसी प्रकार सांगा के जाने से यह संसार लगता है. बिना सूर्य के आकाश ,बिना आत्मा के मृतक शरीर और बादल के बिना धरती निर्जीव लगती है उसी प्रकार सांगा के बिना यह पृथ्वी सूनी लगती है ..जीवनदाता सूर्य के अस्त हो जाने पर जैसे दीपक की लौ अच्छी नहीं लगती ,बार बार सम्राटों को का ग्राह कर उन्हें दयापूर्वक छोड़ देने वाला वाला हिन्दुओं का विशाल सूर्य आज अस्त हो गया .
महाराणा सांगा ने सांगा मेवाड़ के प्रसिद्ध सिसोदिया वंश में जन्म लिया। वे महाराणा प्रताप के पितामह और मीरा बाई के श्वसुर थे। यह वंश दो हजार वर्ष से निरंतर अपने त्याग और बलिदान के दम पर विदेशी आक्रान्ताओं से निरंतर जूझता रहा और इसलिए भारत के समस्त राजवंशों में इसका स्थान आदर से लिया जाता है। स्वयं को सूर्यवंशी और राम के पुत्र लव के वंशज संतान मानने वाले मेवाड़ के राजवंश का इतिहास लाहौर (लवकोट) के अंतिम राजा कनकसेन एवं फिर गुजरात के वल्लभीपुर से होते हुए बाप्पा रावल तक पहुचता है जिसने नागदा में भीलों के बीच रहकर हारीत ऋषि के आशीर्वाद से चित्रांगद मौर्य द्वारा निर्मित चित्रदुर्ग (चित्तोड़ ) किले को अपने मामा राजा मान मौर्य से हासिल किया।
बाप्पा रावल एकमात्र ऐसे भारतीय राजा थे जिन्होंने विदेशी आक्रान्ताओं के सामने रक्षात्मक रूख अपनाने के स्थान पर उनको ईरान-खुरासान तक खदेड़कर बुरी तरह परास्त किया और इस कारण अगले तीन सौ साल तक भारत पर कोई विदेशी आक्रमण का साहस नहीं कर सका।बाप्पा रावल गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे और उन्हें वीर गोरखा वंश का आदिपुरुष भी माना जाता है.
सांगा से पूर्व मेवाङ में बाप्पा रावल ,खुमाण ,समरसी ,कुम्भा आदि कई पराक्रमी संम्राट हुए। राणा सांगा ,राणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र थे। राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज उनसे भी अधिक पराक्रमी थे जिन्हें उनके युद्ध कौशल के कारण "उड़णा पृथ्वीराज " भी कहा जाता है. राणा सांगा ,पृथ्वीराज और तीसरे भाई जयमल ,अपने काका सूरजमल के साथ देवी वीरी चारणी के पास पहुंचे तो पृथ्वीराज और अन्य आसन देखकर बैठ गए और राणा सांगा वीरी के द्वारा बिछाई सिंह की चर्मछाल पर बैठ गया ,इस पर वीरी ने घोषणा की जो व्याघ्रचर्म पर बैठा है वही राजा बनेगा ,इस पर पृथ्वीराज ने कहा कि राजा का फैसला मेरी तलवार करेगी ,ऐसा कह सांगा पर प्रहार किया जिससे सांगा घायल हो कर किसी प्रकार बच पाया। अपने पुत्र के उद्दंड और उग्र व्यवहार के कारण राणा रायमल ने पृथ्वीराज को देशनिकाला दे दिया।
पृथ्वीराज और उनके चाचा सूरजमल के बीच युद्ध से पहले साथ बैठकर भोजनकरते समय का विनोद वार्तालाप इतिहासप्रसिद्ध है जो कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक में विस्मय के साथ लिखा है. पृथ्वीराज अपने बहनोई के से मिलने आबू गया जहां आवश्यकता से अधिक संखिया खा लेने से उसकी मृत्यु हो गई। उधर राणा सांगा अजमेर के पास श्रीनगर में करमचंद पवाँर के रहा और एक दिन उसने देखा की सोते समय राणा सांगा के सर पर एक सर्प छाया किये है। इस अत्यंत विलक्षण योग के कारन सांगा की प्रसिद्धि हो गई और उसने रायमल की मृत्यु के बाद चित्तोड़ का सिंहासन सम्हाला।
राणा सांगा ने शीघ्र ही अपने समस्त शत्रुओं ,मालवा के सुल्तान महमूद ख़िलजी,दिल्ली के इब्राहम लोदी पर विजय प्राप्त की और राजस्थान के समस्त राजा उसके सामंत बनकर उसकी छत्रछाया में आ गए। इधर सांगा समान बाबर भी अपने पराक्रम से समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर भारत निश्चय कर चूका था अतः सांगा के साथ युद्ध निश्चित था. खुद बाबर ने अपनी आत्मकथा में राणा सांगा की प्रशंसा की है.राणा के शरीर पर छोटे मोटे अस्सी घाव थे। साथ ही राणा सांगा के भय से बाबर की सेना में दहशत फ़ैल गयी थी।
जिसके बारे में स्वयं बाबर ने लिखा है - सब पस्तहिम्मत थे और हर तरफ मुर्दनी छाई थी और कोई भी मर्दानगी की बात .नहीं करता था। बयाना की प्रारंभिक भिड़ंत में राणा की जीत हुई थी। बाबर ने अपने सैनिकों में जोश भरते हुए शराब के प्याले तोड़ डाले और कहा ,अगर जीत गए तो गाजी कहलायेंगे और मर गए तो शहीद होकर जन्नत में हूरों का वरण करेंगे. इस पर बाबर की सेना फिर राणा सांगा से युद्ध को तत्पर हुई और राणा के एक सामंत सलहदी तंवर के बाबर से मिल जाने से और तोपखाने की वजह से राणा की सेना में अफरातफरी फ़ैल गई और राणा के स्वयं घायल होकर हाथी से उत्तर जाने की वजह से सेना में भगदड़ मच गई। सांगा को कुछ सरदार युद्धभूमि से निकाल कर ले गए।
होश आने पर सांगा अत्यंत व्यथित हुआ और उसने सरदारों को बुराभला कहा .इस अवसर पर एक चारण कवि ने सांगा को प्रोत्साहित करते हुए यह छंद कहा -
सात बार जरासंध आगल श्रीरंग विमुहा पाछल दीध पग. सांगा तू सालै असुर .
इस पर सांगा ने तुरंत युद्धभूमि में जाने को कहा और अपने सरदारों को कहा कि जब तक बाबर को नहीं जीत लूँगा ,मैं चित्तौड़ नहीं जाऊंगा .
पर सांगा के कुछ सरदारों ने उसे विष दे दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
जयपुर के पास बसवा में उनकी छोटी सी समाधि बानी है जो आज खस्ताहाल में है और अतिक्रमण का शिकार है.
उनकी समाधी पर एक भव्य स्मारक ही उनको राष्ट्र की श्रद्धांजलि होगी.
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