शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

वीर योद्धा भानजीदाल जाडेजा

एक वीर राजपूत योद्धा जिन्होंने अकबर को हरा कर भागने पर मजबूर किया,और कब्जे में लिए 52 हाथी, 3530 घोड़े, पालकिया आदि

वीर योद्धा भानजीदाल जाडेजा और मजेवाड़ी का युद्ध-----------
राजपूत एक वीर स्वाभिमानी और बलिदानी कौम जिनकी वीरता के दुश्मन भी कायल थे, जिनके जीते जी दुश्मन राजपूत राज्यो की प्रजा को छु तक नही पाये अपने रक्त से मातृभूमि को लाल करने वाले जिनके सिर कटने पर भी धड़ लड़ लड़ कर झुंझार हो गए।
वक़्त विक्रम सम्वंत 1633(1576 ईस्वी)। मेवाड़,गोंडवाना के साथ साथ गुजरात भी उस वक़्त मुगलो से लोहा ले रहा था।
गुजरात में स्वयं बादशाह अकबर और उसके सेनापति कमान संभाले थे।
अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर 1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तो वहा के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजपूत राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी। क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भानजी जाडेजा।
सभी राजपूत योद्धा देवी दर्शन और तलवार शास्त्र पूजा कर जूनागढ़ की और सहायता के लिये निकले लेकिन माँ भवानी को कुछ और ही मंजूर था।
उस दिन जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की स्वधर्मी विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया और आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया।
उसने नवानगर के सेनापति वीर भानजी दाल जडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा।
इस पर भान जी और उनके वीर राजपूत योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए और भान जी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को राजपूती तेवर में कहा "क्षत्रिय युद्ध के लिए निकलता है या तो वो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त होकर"
वहा सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा इसलिये सभी वीरो ने फैसला किया की वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे।
अकबर की सेना लाखो में थी और उन्होंने मजेवाड़ी गाँव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था।
इस युद्ध में जैसाजी वजीर भी भानजी के साथ में थे। बादशाह की सेना के पास कई तोपे थी जो सबसे खतरनाक बात थी।
इसीलिये जैसाजी ने भानजी को सुझाव दिया की तोपो को निष्क्रीय करना बहुत जरुरी है और कहा की ये काम आप ही कर सकते हो। अतः भान जी जाडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कूटनीति का उपयोग करते हुए अपने चुनिंदा राजपूत योद्धाओ को साथ लेकर तोपो को निष्क्रिय करने के लिये आधी रात को धावा बोलने का निर्णय लिया। सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट का स्मरण कर शत्रु छावनी की ओर निकल पड़े। वहॉ पहुँचकर एक एक कर तोपो में नागफनी की कीले ठोक कर उन्हें निष्क्रीय करने लगे।
मुगलो को पता चलने पर बहुत संघर्ष हुआ जिसमे अनेक योद्धा घायल और वीरगती को प्राप्त हुए लेकिन सभी तोपो को निष्क्रिय करने में सफल हुए।
इतने में जसा जी पूरी सेना के साथ आ गए और आधी रात को ही भीषण युद्ध शुरू हो गया।
मुगलो का नेतृत्व मिर्ज़ा खान कर रहा था।
उस रात राजपूत सेना द्वारा हजारो मुगलो को काटा गया और मिर्जा खान युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ।
सुबह तक युद्ध चला और मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी।
युद्ध में भान जी ने बहुत से मुग़ल मनसबदारो को काट डाला और हजारो मुग़ल सैनिक मारे गए।
बादशाह अकबर जो की सेना से कुछ किमी की दुरी पर था वो भी उसी सुबह अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़ भाग खड़ा हुआ।
नवानगर की सेना ने मुगलो का 20 कोस तक पीछा किया और जो हाथ आये वो काटे गए।
अंततः भान जी दाल जडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी, 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में लिया।
उस के बाद राजपूती फ़ौज सीधे जूनागढ़ गयी वहा के नवाब को कायरता के लिये सबक सिखाने के लिए। जूनागढ़ के किले के दरवाजे भी उखाड दिए गए और ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है जो आज भी वहा लगे हुए है।
बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिंदगी और पछतावा हुआ।
उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला)नवानगर रियासत को दिए।
कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर 1639 में आया और इस बार उसे "तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुँह देखना पड़ा।
इस युद्ध का वर्णन गुजरात के इतिहास के बहुत से ग्रंथो में है जैसे नर पटाधर नीपजे, सौराष्ट्र नु इतिहास जिसे लिखा है शम्भूप्रसाद देसाई ने। इसके अलावा Bombay Gezzetarium published by Govt of Bombay, साथ ही विभा विलास में, यदु वन्स प्रकाश जो की मवदान जी रतनु ने लिखी है आदि में इस शौर्य गाथा का वर्णन है।
भान जी दल जाडेजा ने इसके बाद भी संवत 1639 में तमाचन और सम्वत 1648 में भूचर मोरी के युद्ध में मुगलों के विरुद्ध अपना पराक्रम दिखाया और शहीद हुए ।
आज भी भान जी दल जाडेजा को सौराष्ट्र के इतिहास में एक महान यौद्धा माना जाता है,
इस शूरवीर को शत शत नमन

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