भाई आलम सिंघ जी , चौहान राजपूत घराने से संबंध रखते थे।
सूरज प्रकाश ग्रंथ,भट्ट बहियों,गुरु कीआं साखीयां आदि रचनाओं में इसका स्पष्ट उल्लेख है ।
"आलम सिंघ धरे सब आयुध,जात जिसी रजपूत भलेरी ।
खास मुसाहिब दास गुरु को,पास रहै नित श्री मुख हेरी ।
बोलन केर बिलास करैं, जिह संग सदा करुणा बहुतेरी ।
आयस ले हित संघर के,मन होए आनंद चलिओ तिस बेरी ।"
(सूरज प्रकाश ग्रंथ- कवि संतोख सिंघ जी..रुत 6,अंसू 39,पन्ना 2948)
भाई आलम सिंघ जी का जन्म दुबुर्जी उदयकरन वाली,जिला स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में सन् 1660 हुआ,जो उनके पूर्वजों ने सन् 1590 में बसाया था ।
भाई आलम सिंघ जी के पिता राव (भाई)दुर्गा दास जी, दादा राव (भाई)पदम राए जी, परदादा राव (भाई)कौल दास जी ,सिख गुरु साहिबान के निकटवर्ती सिख व महान योद्धा थे ।
भाई आलम सिंघ जी के दादा के भ्राता राव (भाई ) किशन राए जी छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी द्वारा मुगलों के खिलाफ लड़ी करतारपुर की जंग में 27 अप्रैल 1635 को शहीद हुए थे ।
भाई आलम सिंघ जी सन् 1673 में 13 वर्ष की आयु में अपने पिता राव (भाई) दुर्गा दास जी के साथ गुरु गोबिन्द सिंघ जी के दर्शन करने आए ।
गुरु जी ने उनको अपने खास सिखों में शामिल कर लिया । वो इतने फुर्तीले थे कि गुरु जी ने उनका नाम 'नचणा' रख दिया था ।
फरवरी 1696 में मुगल फौजदार हुसैन खान ने जब पहाड़ी राजपूत रियासत गुलेर पर आक्रमण किया तो वहां के राजा गज सिंह ने गुरु गोबिन्द सिंघ जी से मदद मांगी । गुरु जी ने अपने चुनिंदा सेनापतियों के नेतृत्व मे सिख फौज भेजी । राजपूतों व सिखों की संयुक्त सेना ने मुगल फौज को बुरी तरह परास्त किया लेकिन इस युद्ध में भाई आलम सिंघ जी के ताऊ जी के 2 पुत्र कुंवर (भाई) संगत राए जी व कुंवर भाई हनुमंत राए जी शहीद हो गए । साथ में राव भाई मनी सिंघ जी (पंवार) के भाई राव (भाई) लहणिया जी भी शहीद हुए ।
19 अगस्त 1695 को लाहौर के गवर्नर दिलावर खान के पुत्र रुस्तम खान ने आनन्दपुर साहिब पर हमला किया तो भाई आलम सिंघ जी व भाई उदय सिंघ जी के नेतृत्व में सिख फौज ने इतनी जोर से बोले सो निहाल सत श्री अकाल के जयकारे बोले और नगारे बजाए कि रुस्तम खान व मुगल फौज भयभीत होकर बिना लड़े भाग गई ।
23 जून 1698 को गुरु गोबिन्द सिंघ जी कटोच इलाके में शिकार खेलने गये तो दो कटोच राजाओं बलिया चंद व आलम चंद ने गुरु जी के साथ कम फौज देख कर उन पर हमला कर दिया लेकिन मुट्ठी भर सिंघों ने इनको बुरी तरह रौंद दिया । राजा आलम चंद की बांह भाई आलम सिंघ जी चौहान ने काट डाली व राजा बलिया चंद भी भाई उदय सिंघ जी पंवार के हाथों बुरी तरह घायल हुआ ।
गुरु गोबिन्द सिंघ जी द्वारा जुल्म के खिलाफ लड़े गए हर युद्ध में भाई आलम सिंघ जी की मुख्य भूमिका रही और बड़ी बात ये भी है कि वो गुरु गोबिन्द सिंघ जी के शस्त्र विद्या के उस्ताद भाई बज्जर सिंघ जी (राठौड़) के दामाद थे ।
भाई आलम सिंघ जी के समस्त परिवार ने गुरु जी द्वारा मुगलों के खिलाफ युद्धों में मोर्चा संभाला व समय समय पर शहीदीयां दी ।
भाई आलम सिंघ जी भी अपने एक भ्राता भाई बीर सिंघ जी व अपने दो पुत्रों भाई मोहर सिंघ जी, भाई अमोलक सिंघ जी सहित चमकौर की जंग में 7 दिसंबर 1705 को शहीद हुए ।
भाई आलम सिंघ जी की वंशावली
महाराजा सधन वां (अहिच्छेत्रपुर के महाराजा)
महाराजा चांप हरि
महाराजा कोइर सिंह
महाराजा चांपमान
महाराजा चाहमान (चौहान)
महाराजा नरसिंह
महाराजा वासदेव
महाराजा सामंतदेव
महाराजा सहदेव
महाराजा महंतदेव
महाराजा असराज
महाराजा अरमंतदेव
महाराजा माणकराव
महाराजा लछमन देव
महाराजा अनलदेव
महाराजा स्वच्छ देव
महाराजा अजराज
महाराजा जयराज
महाराजा विजयराज
महाराजा विग्रह राज
महाराजा चन्द्र राज
महाराजा दुर्लभ राज
महाराजा गूणक देव
महाराजा चन्द्र देव
महाराजा राजवापय
महाराजा शालिवाहन
महाराजा अजयपाल
महाराजा दूसलदेव
महाराजा बीसलदेव
महाराजा अनहलदेव
महाराजा विग्रह राज
महाराजा मांडलदेव
महाराजा दांतक जी
महाराजा गंगवे
महाराजा राण जी
महाराजा बीकम राय
महाराजा हरदेवल
महाराजा गोल राय
महाराजा गोएल राय
महाराजा गज़ल राय
राव उदयकरन जी
राव अंबिया राय
राव कौल दास
राव पदम राय
राव दुर्गा दास
राव आलम सिंघ जी
लेखक - श्री सतनाम सिंह जी पंवार