#दुख है #मैनपुरी वाले सब भूल गए....
#अतिमहत्वपूर्ण_जानकारी.
#मैनपुरी जिले का इतिहास वीर गाथाओं से भरा पड़ा है। यहां की माटी में जन्मे लालहमेशा गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए हर सम्भव कोशिश करते रहे। ब्रिटिश राजमें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां की माटी वीर सपूतों के खून से लाल हुई है।पृथ्वीराज चौहान के बाद उनके वंश के वीर देशभर में बिखर गए। उन्हीं में से एक प्रतापरुद्र् जो की नीमराना से आये थे उन्होंने 1310 ई. में मैनपुरी में सर्वप्रथम चौहान वंश की स्थापनाकी। 1857 में जब स्वतंत्रता आंदोलन की आग धधकी तो महाराजा तेजसिंह की अगुवाई में मैनपुरी में भी क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया। तेज सिंह वीरता से लड़े। और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। घर के भेदी की वजह से उन्हें भले ही अंग्रेजों को खदेड़ने में सफलता न मिली हो लेकिन इसमें उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। तेजसिंह ने जीवन भर मैनपुरी की धाक पूरी दुनिया में जमाए रखी।इतिहास गवाह है कि 10 मई 1857 को मेरठ से स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत हुई, जिसकी आग की लपटें मैनपुरी भी पहुंची। इस आंदोलन से पांच साल पहले ही महाराजा तेजसिंह को मैनपुरी की सत्ता हासिल हुई थी। उन्हें जैसे-जैसे अंग्रेजोंके जुल्म की कहानी सुनने को मिली, उनकी रगों में दौड़ रहा खून अंग्रेजी हुकूमत कोजड़ से उखाड़ फेंकने के लिए खौल उठा और 30 जून 1857 को अंग्रेजी हुकूमत केविरुद्ध तेजसिंह ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने मैनपुरी के स्वतंत्र राज्य की घोषणा करते हुए ऐलान कर दिया। फिर क्या था राजा के ऐलान ने आग में घी का काम किया और उसी दिन तेजसिंह की अगुवाई में दर्जनों अंग्रेज अधिकारी मौत के घाट उतार दिए गए। सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेजों की सम्पत्ति पर तेजसिंहकी सेना ने कब्जा कर लिया। तेजसिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी पावर को प्राण की भीख मांगने पर छोड़ दिया और मैनपुरी तेजसिंह की अगुवाई में क्रांतिकारियों की कर्मस्थली बन गयी। मगर स्वतंत्र राज्य अंग्रेजों को बर्दाश्त नहीं था। फलस्वरूप 27 दिसम्बर 1857 को अंग्रेजों ने मैनपुरी पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में तेजसिंह के 250 सैनिक भारत माता की चरणों में अर्पित हो गए। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में तेजसिंह की भूमिका ने क्रांतिकारियों को एक जज्बा प्रदानकर दिया। हालांकि उनके चाचा राव भवानी सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह का साथ नहीं दिया। फलस्वरूप तेजसिंह अंग्रेजों से लड़ते हुए गिरफ्तार होगए और अंग्रेजों ने उन्हें बनारस जेल भेज दिया। इसके बाद भवानी सिंह को मैनपुरीका राजा बना दिया गया। 1897 में बनारस जेल में ही तेजसिंह की मौत हो गयी।मैनपुरी के इस क्रांतिकारी राजा को उनकी प्रजा की तरफ से शत शत नमन...
आगे का वंशावली--प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये१.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसेमैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे२.राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं४.पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैंमहाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये१. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे२. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे२. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैंखानदेव जी के भाव सिंह जी हुयेभावसिंह जी के देवराज जी हुयेदेवराज जी के धर्मांगद जी हुयेधर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये१. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे२. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आस पास बसे.