मारवाड़ के चाणक्य कहे जाने वाले भाटी गोयन्ददास के दादा की कथा है यह, उनका नाम नीम्बा था । यह नीम्बा उस समय उचियारड़े नामक ग्राम में रहता था, जहां सोलंकी राजपूतों का आधिक्य था । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यह नीम्बा भाटी ‘जैसा’ का पौत्र था ।इस जैसा को राव जोधा अपने संकट काल में इस वचन के साथ अपने साथ जैसलमेर रियासत से लाये थे कि वे राजकीय आय का चौथा हिस्सा उसे देंगे ।
यह ‘जैसा’ जैसलमेर के रावल केहर का पौत्र और राजकुमार कलिकर्ण का पुत्र था व सुप्रसिद्ध हड़बू सांखला का दोहिता था, पर मंडोर हाथ आते ही जोधा ने वचन भुला दिया । परिणामत: जैसा का पुत्र अणदा सामान्य स्थिति में आ गया और उसकी संतान यत्र-तत्र रहने लगी । नीम्बा के इसी सामान्य काल की इस कहानी में संबंधों की वह सुगंध है, जो सामन्ती काल की नैतिकता और प्रतिबद्धता को सामने लाती है ।
इस नीम्बा भाटी के साथ जुड़े पात्र रतनू भीमा के संबंध में भी जानना जरूरी है, रतनू चारणों का सम्बन्ध इतिहास के उस काल से है, जब जैसलमेर की स्थापना नहीं हुई थी और भाटी तन्नौट के शासक थे । तब देवराज नामक भाटी राजकुमार की बारात बिठोड़े (भटिंडा) गई थी ।जहां पूरी बरात को वराहों ने काट डाला था, जान बचाकर भागते राजकुमार का शत्रु पीछा कर रहे थे, उस संकटकाल में देवायत नामक पुष्करणा ब्राह्मण ने उसे बचाया था । शत्रुओं को उसने राजकुमार को अपना बेटा बताया था और अपने पुत्र रतन के साथ खाना खिलवाकर उसके शत्रुओं से उसकी प्राण रक्षा की थी ।
उसके बाद ब्राह्मणों ने उस रतन को जाति से निकाल दिया था, भाटी देवराज ने लौद्रवा के शासक बनते ही इस रतन की शादी चारणों में करवाकर उसे अपना सम्मानित प्रोलपात बना दिया था । इसलिए रतनू चारण भाटियों से अपना भाई का सम्बन्ध मानते थे और भाटी उन्हें बड़े भाई और उद्धारक का मान देते थे । रतनू भीमा इसी शाखा से सम्बन्ध रखता है, इसलिए भाटी नीम्बा से उसके आत्मीय सम्बन्ध हैं ।
यह घटना एक दशहरे के उत्सव की है, उस उत्सव में चारण भीमा रतनू भी उपस्थित था । उचियारड़ा ग्राम में दशहरा मनाया जा रहा था और देवी पूजन किया जा रहा था । देवी की पूजा के लिए बलि का विधान था ।
अत: बलि के लिए खाजरू (बकरा) लाया गया, जो बकरा बलि हेतु लाया गया था, उसकी गर्दन के नीचे लम्बे बाल दाढ़ी की तरह लटक रहे थे । भाटी नीम्बा के भी लम्बी दाढ़ी थी । जब बलि के लिए बकरा लाया जा रहा था, तब कुछ सांखलों के किशोर-युवा उस बकरे को ‘नीम्बाजी भाटी’ नाम से संबोधित करते हुए भाटी नीम्बा का उपहास करने लगे, न केवल उपहास ही किया बल्कि बलि देते समय भी कहा कि ‘नीम्बाजी भाटी’ की बलि दी जा रही है । यह सब रतनू भीमा ने अपनी आँखों से के सामने घटित होते देखा, उसका खून खौल उठा । वह अकेला सांखलों का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता था, इसलिए वहां तो कुछ नहीं बोला पर उसके कलेजे में आग लगी थी ।
वह सीधा नाई के पास पहुंचा और भदर हो गया, भदर होना मृत्युसूचक संकेत होते हैं, जिसमें व्यक्ति न केवल मुण्डन करवाता है, अपितु दाढ़ी-मूंछ भी मुंडवा लेता है । ठीक मृत्युसूचक बाना धारण कर रतनू भीमा भाटी नीम्बा के पास पहुंचा । भाटी नीम्बा ने भीमा से पूछा – ‘बारहठजी किसके पीछे भदर हुए हो ?’ भीमा ने सजल आँखों से कहा – ‘नीम्बाजी भाटी के पीछे ।’ भाटी नीम्बा के बात समझ में नहीं आई, तब रतनू भीमा ने सारी बात बताई और यह भी कहा कि बात केवल किशोरों-युवाओं की होती, तब भी परिहास समझ कर उसे छोड़ा जा सकता था, पर किसी बुजुर्ग तक ने उन्हें टोका नहीं, उलटे हंसने लगे ।
भाटी नीम्बा यह सब सुनकर तिलमिला उठे, उन्होंने अपना साथ इकट्ठा किया और बलि-पूजा में उन्मादित सांखलों पर टूट पड़े । बचेखुचे सांखले गाँव छोड़ कर भाग गए, तब जाकर रतनू भीमा के कलेजे में ठंडक पड़ी, पर चीजों का अंत कहाँ होता है । बचेखुचे सांखलों में से एक सांखला आगरा जा पहुंचा और पठान जलालखां जलवानी के यहाँ नौकर हो गया ।
लोकाख्यानों में आता है कि इस पठान जलालखां जलवानी ने अपने उस नौकर के कहने से भाटी नीम्बा और उसके साथियों को उचियारड़े ग्राम में खत्म कर दिया था । यह भी सुनने में आता है कि भाटी नीम्बा ‘गिरी-सुमेल’ की लड़ाई में घायल हो गया था और वह अपने घायल साथियों के साथ अपने गाँव में घावों का उपचार कर रहा था, कि यह घटना घटित हो गई ।
उसका पुत्र भाटी माना किसी तरह बच निकला और केलावा ग्राम में अज्ञातवास में रहने लगा । वहां उसकी स्थिति यह थी कि घर में खाने पीने के लाले पड़ रहे थे । पत्नी गर्भवती थी, बच्चा होनेको था, पर घर में फूटी कौड़ी भी नहीं थी । लाचार माना ने चोरी करने की ठानी । गर्भवती पत्नी को कराहते छोड़कर वह चोरी करने निकला ।
पास में ही ऊँटों के टोले (समूह) के साथ एक व्यापारिक कारवाँ रुका हुआ था । वह कारवाँ के ऊँटों में छिप कर चोरी का मौका तलाश ही रहा था कि उसके घर में लड़के होने की सूचक थाली बजी । थाली बजने की ध्वनि सुनकर कारवाँ के साथ चल रहे शकुनी ने भविष्यवाणी करते कहा - ‘अगर यह बच्चा राजपूत के घर जन्मा है तो बड़ा प्रतापी होगा और राजा भी इससे सलाह लेकर काम करेगा । और अगर यह बच्चा जाट के घर जन्मा है तो गाँव में इसका डाला लूण पड़ेगा ।’ भविष्यवाणी सुनकर माना शकुनी के चरणों में गिर पड़ा और अपनी सारी बेबशी व हकीकत बताई ।
हकीकत सुनकर शकुनी जो जाट था, उसे कारवां के मालिक के पास ले गया और भाटी माना को रोटी-पानी की सहायता की । अनाज की पोटली लेकर जब वह घर पहुंचा, तब दाई ने पहले तो माना को इस स्थिति में पत्नी को छोड़ जाने के लिए डांटा । फिर पत्नी की आंवळ ( गर्भ-नाल ) का बर्तन देते हुए कहा कि इसे हाथ भर गहरा गड्ढा खोदकर गाड़ना ताकि कोई जानवर निकाल नहीं पाए । अपने घर के पिछवाड़े जब माना ने हाथ भर गहरा गड्ढा खोदा तो उसका हाथ किसी धातु के बर्तन से टकराया । खोदकर निकालने पर उस ताम्बे के बर्तन में सोने की मोहरें मिली| शकुनी की भविष्यवाणी सच्च होने की शुरुआत हो चुकी थी | यही बच्चा आगे चल कर इतिहास प्रसिद्ध भाटी गोयन्ददास ( गोविन्ददास ) के नाम से विख्यात हुआ ।।
साभार- आईदानसिंह भाटी