The great rajput soldier ------
----भारतीय सेना का इकलौता जवान जिसे मौत के बाद भी प्रमोशन और छुट्टियाँ मिलती है-----
आज हम आपको भारतीय सेना के एक वीर राजपूत सैनिक की हैरतअंगेज गाथा सुनाने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप सभी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा।
मूलरूप से पौड़ी उतराखंड के रहने वाले वीर जवान जसवंत सिंह रावत की दास्तां अब दुनिया देखेगी।यह जसवंत सिंह की वीरता ही थी कि भारत सरकार ने
उनकी शहादत के बाद भी सेवानिवृत्ति की उम्र तक उन्हें
उसी प्रकार से पदोन्नति दी, जैसा उन्हें जीवित होने पर
दी जाती थी। भारतीय सेना में अपने आप में यह मिसाल
है कि शहीद होने के बाद भी उन्हें समयवार पदोन्नति दी जाती रही। मतलब वह सिपाही के रूप में सेना से जुड़े और सूबेदार के पद पर रहते हुए शहीद हुए और अब वो मेजर की पोस्ट पर कार्यरत है ...
महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह ने वर्ष 1962 में हुए युद्ध में अकेले ही चीन की सेना को 72 घंटो तक रोके रखा था।
अरूणाचल में इस जवान को बाबा के नाम से पुकारा जाता है और वहां जसवंत बाबा का मंदिर भी है।
जसवंत देशभर में अकेले ऐसे सैनिक रहे जिन्हें मरने के बाद भी प्रमोशन और सालाना छुट्टियां मिलती रही। राइफलमैन से वो अब मेजर जनरल बन चुके हैं।
वहां बिना बाबा को याद किए सैनिक राइफल नहीं उठाते। बाबा की याद में वहां एक मंदिर बनाया गया है। लोगों का मानना है कि अब भी बाबा के लिए बनाए गए कमरे में आकर ठहरते हैं क्योंकि सुबह चादर में सिलवट होती है। कमरे में प्रेस कर रखी गई शर्ट भी मैली होती है।
सेला टॉप के पास की सड़क के मोड़ पर वह अपनी लाइट मशीन गन के साथ तैनात थे. चीनियों ने उनकी चौकी पर बार-बार हमले किए लेकिन उन्होंने पीछे हटना क़बूल नहीं किया!
चीनी मशीनगन शांत जसवंत सिंह और उनके साथी लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गोसांई ने एक बंकर से क़हर बरपा रही चीनी मीडियम मशीन गन को शांत करने का फ़ैसला किया. बंकर के पास पहुँच कर उन्होंने उसके अंदर ग्रेनेड फेंका और बाहर
निकल रहे चीनी सैनिकों पर संगीनों से हमला बोल दिया.
चीनी मीडियम मशीन को खींचते हुए वह भारतीय चौकी पर ले आए और फिर उन्होंने उसका मुँह चीनियों का तरफ़ मोड़ कर उन्होंनें उनको तहस-नहस कर दिया.
मैदान छोड़ने के बाद चीनियों ने उनकी चौकी पर दोबारा हमला किया. अब अकेले रायफलमैन जसवंत सिंह रावत ने मोर्चा सम्भाल लिया। वहां पर पांच बंकरों पर
मशीनगन लगायी गयी थी और रायफलमैन जसवंत सिंह
छिप छिपकर और कभी पेट के बल लेटकर दौड़ लगाता रहा और कभी एक बंकर से तो कभी दूसरे से और तुरन्त तीसरे से और फिर चैथे से, अलग अलग बंकरों से शत्रुओं पर गोले बरसाता रहा। पूरा मोर्चा सैकड़ों चीनी सैनिकों से घिरा हुआ था और उनको आगे बढ़ने से रोक
रहा था तो जसवंत सिंह का हौसला, चतुराई भरी फुर्ती,
चीनी सेना यही समझती रही कि हिंदुस्तान के अभी कई सैनिक मिल कर आग बरसा रहे हैं। जबकि हकीकत कुछ और थी, इधर जसवंत सिंह को लग गया था कि अब मौत निश्चित है अतः प्राण रहते तक माँ भारती और तिरंगे की आन बचाए रखनी है।
जितना भी एमुनिशन उपलब्ध था, समाप्त होने तक चीनियों को आगे नहीं बढ़ने देना है। रणबांकुरा बिना थके, भूखे-प्यासे पूरे 72 घंटे (तीन दिन तीन रात) तक चीनी सेनाओं की नाक में दम किये रहा।
72 घंटों तक लगभग अकेले मुक़ाबला करते हुए जसवंत सिंह मारे गए. कहा जाता है जब उनको लगा कि चीनी उन्हें बंदी बना लेंगे तो उन्होंने अंतिम बची गोली से अपने आप को निशाना बना लिया. उनके बारे में एक और कहानी प्रचलित है. पीछे हटने के आदेश के बावजूद वह 10000 फीट की ऊंचाई पर मोर्चा संभाले रहे. वहाँ उनकी मदद दो स्थानीय बालाओं सेला और नूरा ने की. लेकिन उनको राशन पहुँचाने वाले एक
व्यक्ति ने चीनियों से मुख़बरी कर दी कि चौकी पर वह अकेले भारतीय सैनिक बचे हैं. यह सुनते ही चीनियों ने वहाँ हमला बोला. चीनी कमांडर इतना नाराज़ था कि उसने जसवंत सिंह का सिर धड़ से अलग कर दिया और उनके सिर को चीन ले गया.
लेकिन वह उनकी बहादुरी से इतना प्रभावित हुआ कि लड़ाई ख़त्म हो जाने के बाद उसने जसवंत सिंह की प्रतिमा बनवाकर भारतीय सैनिकों को भेंट की जो आज भी उनके स्मारक में लगी हुई है....
भारतीय सेना के इस वीर राजपूत जवान ने अपने राजपूती रक्त का मान रखते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। इसलिए भारत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र प्रदान किया।
जय राजपूताना।